शीर्ष युक्तियाँ

वित्तीय प्रणाली की महत्व

वित्तीय प्रणाली की महत्व
We are always available to address the needs of our users.
+91-9606800800

भारतीय वित्तीय प्रणाली में NBFCs की भूमिका

प्रश्न: NBFCS हमारे SME परिवेश को सुदृढ करने एवं आर्थिक विकास में योगदान करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। टिप्पणी कीजिए। साथ ही, NBFCS द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियों का समाधान करने हेतु एक नियामक ढांचा तैयार करने की आवश्यकता पर चर्चा कीजिए।

  • भारतीय वित्तीय प्रणाली में NBFCs की भूमिका का उल्लेख करते हुए उत्तर प्रारंभ कीजिए।
  • हमारे SME तंत्र को सुदृढ़ करने में NBFCs की भूमिका पर चर्चा कीजिए।
  • NBFCs द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियों का उल्लेख कीजिए।
  • उपर्युक्त चुनौतियों का समाधान करने के लिए नियामक ढांचे के निर्माण की आवश्यकता पर चर्चा कीजिए।

उत्तर

विगत कुछ दशकों में, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (NBFCs), अल्पसेवित क्षेत्रों एवं बैंकों के दायरे से बाहर के क्षेत्रों, विशेषकर लघु और खुदरा क्षेत्र, में महत्वपूर्ण वित्तीय मध्यस्थों के रूप में उभरी हैं।

  • वे समाज के बैंकों के दायरे से बाहर के क्षेत्रों को ऋण प्रदान करने में बैंकिंग क्षेत्र के पूरक के रूप में कार्य करती हैं; विशेष रूप से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) को, जो देश में उद्यमिता एवं नवाचार के आधार का निर्माण करते है।
  • ग्राहकों और उनके ऋण की बेहतर आधारभूत समझ, NBFCs को वित्तीय प्रणाली की महत्व प्रोत्साहन और अपने ग्राहकों की आवश्यकता के अनुरूप उत्पादों के निर्माण की क्षमता प्रदान करती है।
  • सूक्ष्म वित्तीयन, यूज्ड व्हीकल फाइनेंसिंग या ग्रामीण आवास जैसे क्षेत्रों में अनेक NBFCs की वितरण पहुँच बैंकों की तुलना में बेहतर बनी हुई है।
  • NBFCS समाज के कमजोर वर्गों को वित्तीय समर्थन प्रदान कर और ग्रामीण क्षेत्रों में परिवहन, रोजगार उत्पादन, संपत्ति निर्माण और बैंक ऋण को प्रोत्साहन देकर महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।
  • ये विशिष्ट रूप से MSMEs में सीमित वित्तीय संसाधनों को पूंजी निर्माण हेतु चैनलीकृत करती हैं।

वित्तीय प्रणाली की महत्व

अस्वीकरण :
इस वेबसाइट पर दी की गई जानकारी, प्रोडक्ट और सर्विसेज़ बिना किसी वारंटी या प्रतिनिधित्व, व्यक्त या निहित के "जैसा है" और "जैसा उपलब्ध है" के आधार पर दी वित्तीय प्रणाली की महत्व जाती हैं। Khatabook ब्लॉग विशुद्ध रूप से वित्तीय प्रोडक्ट और सर्विसेज़ की शैक्षिक चर्चा के लिए हैं। Khatabook यह गारंटी नहीं देता है कि सर्विस आपकी आवश्यकताओं को पूरा करेगी, या यह निर्बाध, समय पर और सुरक्षित होगी, और यह कि त्रुटियां, यदि कोई हों, वित्तीय प्रणाली की महत्व को ठीक किया जाएगा। यहां उपलब्ध सभी सामग्री और जानकारी केवल सामान्य सूचना उद्देश्यों के लिए है। कोई भी कानूनी, वित्तीय या व्यावसायिक निर्णय लेने के लिए जानकारी पर भरोसा करने से पहले किसी पेशेवर से सलाह लें। इस जानकारी का सख्ती से अपने जोखिम पर उपयोग करें। वेबसाइट पर मौजूद किसी भी गलत, गलत या अधूरी जानकारी के लिए Khatabook जिम्मेदार नहीं होगा। यह सुनिश्चित करने के हमारे प्रयासों के बावजूद कि इस वेबसाइट पर निहित जानकारी अद्यतन और मान्य है, Khatabook किसी भी उद्देश्य के लिए वेबसाइट की जानकारी, प्रोडक्ट, सर्विसेज़ या संबंधित ग्राफिक्स की पूर्णता, विश्वसनीयता, सटीकता, संगतता या उपलब्धता की गारंटी नहीं देता है।यदि वेबसाइट अस्थायी रूप से अनुपलब्ध है, तो Khatabook किसी भी तकनीकी समस्या या इसके नियंत्रण से परे क्षति और इस वेबसाइट तक आपके उपयोग या पहुंच के परिणामस्वरूप होने वाली किसी भी हानि या क्षति के लिए उत्तरदायी नहीं होगा।

अब तक का इतिहास

वर्ष 1947 में स्वतंत्रता के समय, भारतीय पूंजी बाजार अपेक्षाकृत कम विकसित था । पूंजी की मांग तीव्र गति से बढ़ रही थी, तथापि पूंजी प्रदान करने वालों की कमी थी । उस समय के वाणिज्यिक बैंक दीर्घावधि पूंजी आवश्यकताओं को पर्याप्त रूप से पूरा करने में सक्षम नहीं थे । अर्थव्यवस्था की पूंजी आवश्यकताओं की इस कमी और मांग-आपूर्ति के अन्तराल को भरने के लिए भारत सरकार ने आईएफसी अधिनियम, 1948 के द्वारा 1 जुलाई, 1948 को दि इण्डस्ट्रियल फाइनेंस कारपोरेशन ऑफ इण्डिया (आईएफसीआई) की वित्तीय प्रणाली की महत्व स्थापना की ।

आईएफसीआई भारत का प्रथम विकास वित्तीय संस्थान था जो अवस्थापना और उद्योग के विकास की मार्फत आर्थिक वृद्धि को बढ़ाने के लिए स्थापित किया गया था । तब से आईएफसीआई ने वृद्धि व विकास के विभिन्न क्षेत्रों अर्थात् विनिर्माण, अवस्थापना और सेवाएं व कृषि से सम्बन्धित क्षेत्रों में निरन्तर सहयोग के द्वारा महत्वपूर्ण योगदान दिया है । वर्ष 1991 में भारतीय अर्थव्यवस्था में उदारीकरण ने भारतीय पूंजी बाजारों व वित्तीय प्रणाली में महत्वपूर्ण परिवर्तन किए । पूंजी बाजारों की मार्फत सीधे ही निधियां जुटाने में सहयता देने के लिए आईएफसीआई को सांविधिक निगम से परिवर्तित करके भारतीय कम्पनी अधिनियम, 1956 के अधीन एक कम्पनी बनाया गया । इसके परिणामस्वरूप, कम्पनी का नाम अक्तूबर, 1999 से "आईएफसीआई लिमिटेड" किया गया ।

निवेश करते हैं तो जान लें कैसे काम करती है वित्तीय प्रणाली

निवेश करते हैं तो जान लें कैसे काम करती है वित्तीय प्रणाली

बदला है बाजार का रूप
तब से लेकर अब तक गंगा में बहुत पानी बह चुका है. उस समय बाजार के लिए कोई नियामक नहीं था. नियामक बनने, डीमैटेरियलाईजेशन, कम्पयूटराइज्ड एक्सचेंज से लेकर सभी कारोबार पर नजर रखने तक बहुत सी ऐसी चीजें हुई हैं, जिसने बाजार की चाल बदल दी है. इसके बाद ऑनलाइन ट्रेडिंग, बैंकिंग सिस्टम से रियल टाइम लिंकेज जैसी बहुत सी चीजें आज बाजार को नए रूप में ला चुकी हैं. इन सब बदलावों से आज लोगों के निवेश का तरीका भी बदल चुका है. हम एक ऐसे मुकाम पर पहुंच चुके हैं जहां बाजार में क्या चल रहा है, इस बारे में हमें कोई बहला नहीं सकता.

भारतीय बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र से जुड़े संकट के पीछे की अनकही कहानी – पांडेमोनियम

नई दिल्ली के एक यस बैंक ब्रांच के बाहर खड़ा व्यक्ति | फोटो : मनीषा मोंडल/दिप्रिंट

क्या वास्तव में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक, भारत की वित्तीय प्रणाली की रीढ़ हैं? सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक में ,सरकार के स्वामित्व का स्वरूप कैसा है ? वह कौन से कारण हैं जो सार्वजानिक बैंको को आगे बढ़ने से रोकती है ?

वित्तीय विषयों के लेखक और पत्रकार तमल बंद्योपाध्याय ने अपनी पुस्तक ‘पांडेमोनियम: द ग्रेट इंडियन बैंकिंग ट्रेजेडी’ में बैंकिंग क्षेत्र को कमजोर करने की कोशिश की गहन पड़ताल की है. यह पुस्तक भारतीय बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र से जुड़े संकट के पीछे की अनकही कहानियों को सामने लाती है.

पुस्तक में विस्तार से बैंकिग क्षेत्र से जुड़ी अनगिनत समस्याओं को, सरल भाषा में समझाया है.

वित्तीय प्रणाली और संभावित आपदाएं

पुस्तक को मोटे तौर पर पांच भागों में वर्गीकृत किया गया है, यथा, भारत में बैंकिंग की इतिहास, घोटाले, बैंकिंग क्षेत्र के संभावित चुनौतिओं के साथ-साथ देश की वित्तीय प्रणाली को हिला देने वाली संभावित आपदाओं के बारे में विस्तार से बताया गया है.

एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में बैंकिंग को पुनःआकार देने वाली नाटकीय ताकतों को समझने के लिए यदि हम गहरी दृष्टि डालते हैं, तो यह पुस्तक भारतीय बैंकिंग का एक विहंगम दृश्य दिखाता है और एक फ्लाई-ऑन-वॉल डॉक्यूमेंट्री भी.

बैंकिंग की इस जटिल समस्याओं को समझने के लिए निति नियामकों, शीर्ष के बैंकरों, बैंकिंग मामले के अर्थशास्त्रियों और उद्योग जगत के दिग्गजों के साथ मिलकर लेखक ने इस वितान को हमारे समक्ष लाने का एक सफल प्रयास किया है. साथ ही बैंकिंग संकट जैसी जटिल विषय को जिस मजबूती और भाषाई सरलता के साथ समझाने का प्रयास किया है, वह वास्तव में प्रसंशनीय है.

आरबीआई के चार गर्वनरों का अहसास

पुस्तक का दूसरा-अंतिम भाग सबसे अधिक रोचक है. इसका कारण – भारतीय रिजर्व बैंक के चार पूर्व गवर्नर , सी रंगराजन, वाई.वी. रेड्डी, डी सुब्बाराव, और रघुराम राजन, के साथ बंद्योपाध्याय का विस्तृत बातचीत है. इस वार्तालाप में, आरबीआई के चारों पूर्व गवर्नर , अपने-अपने कार्यकाल में लिए गए निर्णयों के विषय में जानकारी साझा करते हैं. इसमें महत्वपूर्ण यह है कि, उन्हें इस बात का अहसास होता है कि ,यदि कुछ निर्णय अथवा नीति को अन्य तरीके से लिया गया रहता तो बेहतर होता .

सीधे शब्दों में कहें, भारतीय बैंकिंग की मौजूदा संरचना और उससे जुड़े हुए अन्य मुद्दे , बैंकिंग से संबन्धित विकास को अवरुद्ध रहा है. खराब ऋण (Bad Loan ), बैलेंस शीट के साथ गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां (NPA) भारतीय बैंकों की संभावनाओं को नीचे खींच रही हैं. अपने लेखन कौशल से अपनी पुस्तक में तमल बंद्योपाध्याय ने भारतीय अर्थव्यवस्था की सच्ची तस्वीर को चित्रित किया है.

लेखक के बारे में

तमल बंद्योपाध्याय, ने भारतीय अर्थव्यवस्था और व्यापर से जुडी पांच महवत्पूर्ण और चर्चित पुस्तकें लिखी हैं, पांडेमोनियम: द ग्रेट इंडियन बैंकिंग ट्रेजेडी , उनकी छठी किताब है. यह वित्तीय प्रणाली की महत्व जानना दिलचस्प है कि,अंग्रेजी साहित्य के छात्र (MA , कलकत्ता विश्वविद्यालय), तमल बंद्योपाध्याय ने पत्रकारिता में अपना करियर एक ट्रेनी जौर्नालिस्ट के रूप में टाइम्स ऑफ इंडिया के साथ मुंबई में शुरू किया था.

बाद के वर्षो में उन्होंने कई अन्य प्रमुख मिडिया संस्थानों में अपना योगदान दिया है. तमल, बिजनेस स्टैंडर्ड और एचटी की ‘मिंट’ में प्रकाशित बैंकिंग और फाइनेंस पर अपने साप्ताहिक कॉलम के कारण, पाठकों के मध्य एक सुपरचित नाम हैं. 2019 में, लिंक्डइन ने उन्हें ‘भारत में सबसे प्रभावशाली आवाज़ों में से एक’ के वित्तीय प्रणाली की महत्व रूप में नामित किया था.

आम जनमानस के समक्ष ऐसे अनकहे सच को सामने लाने में जो नैतिक साहस का उन्होंने परिचय दिया है, यह उन्हें अपने ही समय के अन्य लेखकों से अलग करता है. समकालीन भारत की चुनौतियों और आर्थिक क्षमता और विषमता को समझने के लिए इस किताब को पढ़ा जाना चाहिए. उन्ही के लिखी अन्य किताबों की तरह यह हमारे बुकशेल्फ़ में शामिल की जाने वाली एक महत्वपूर्ण पुस्तक है.

रेटिंग: 4.41
अधिकतम अंक: 5
न्यूनतम अंक: 1
मतदाताओं की संख्या: 502
उत्तर छोड़ दें

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा| अपेक्षित स्थानों को रेखांकित कर दिया गया है *