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एक डॉलर खाता क्या है

एक डॉलर खाता क्या है

Rupee vs Dollar: रुपये के साथ 37 साल में पहली बार हुआ ऐसा, जानिए अब क्या रह गई है कीमत

रुपये की कीमत में सोमवार को 30 पैसे की गिरावट आई और अमेरिकी डॉलर के मुकाबले यह 82.775 पर बंद हुआ। एशिया की दूसरी अधिकांश करेंसीज की कीमत में भी गिरावट आई। इसकी वजह यह है कि अगले हफ्ते कुछ देशों के सेंट्रल बैंकों की अगले हफ्ते बैठक होने जा रही है। इसमें नीतिगत दरों में बढ़ोतरी की जा सकती है। अक्टूबर में रुपये में डॉलर के मुकाबले 1.77 फीसदी की गिरावट आई। यह लगातार दसवां महीना है जब रुपये की कीमत डॉलर के मुकाबले गिरी है। इससे पहले अंतिम बार दिसंबर 2021 में रुपये डॉलर के मुकाबले मजबूत हुआ था। 1985 के बाद यह पहला मौका है जब रुपये की कीमत में डॉलर के मुकाबले इतने लंबे समय तक गिरावट आई है।

इसके साथ ही रुपया एक दशक में डॉलर के खिलाफ सबसे खराब सालाना प्रदर्शन की ओर बढ़ रहा है। अमेरिका फेडरल रिजर्व (US Federal Reserve) के एक बार फिर ब्याज दरों में इजाफा करने की उम्मीद है। माना जा रही है कि नीतिगत दरों में एक बार फिर 75 बेसिस पॉइंट्स की बढ़ोतरी की जा सकती है। इसके साथ ही चीन के इकनॉमिक आउटलुक के कारण भी एशियाई करेंसीज की मांग प्रभावित हुई।

डॉलर हुआ मजबूत

पिछले कारोबारी सत्र में रुपया 82.47 रुपये प्रति डॉलर पर बंद हुआ था। दुनिया की छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले डॉलर की मजबूती को आंकने वाला डॉलर सूचकांक 0.28 प्रतिशत की तेजी के साथ 111.05 पर था। शेयरखान में रिसर्च एनालिस्ट अनुज चौधरी ने कहा कि अमेरिकी डॉलर के मजबूत होने से रुपये में गिरावट आई। लेकिन शेयर बाजारों में तेजी और कच्चे तेल में गिरावट ने इसे ज्यादा नीचे नहीं जाने दिया। इतनी ही नहीं विदेशी निवेशकों के एक डॉलर खाता क्या है पैसा डालने से भी निचले स्तर पर रुपये को सपोर्ट मिला।

रुपये के कमजोर होने से भारतीय अर्थव्यवस्था को होने वाले फायदे और नुकसान

1 जनवरी 2018 को एक डॉलर का मूल्य 63.88 था. इसका मतलब है कि जनवरी 2018 से अक्टूबर 2018 तक डॉलर के मुकाबले भारतीय रूपये में लगभग 15% की गिरावट आ गयी है. इस लेख में हम यह बताने जा रहे हैं कि रुपये की इस गिरावट का भारत की अर्थव्यवस्था पर क्या सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है.

Falling Indian Currency

भारत में इस समय सबसे अधिक चर्चा अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारत के गिरते रुपये के मूल्य की हो रही है. अक्टूबर 12, 2018 को जब बाजार खुला एक डॉलर खाता क्या है तो भारत में एक डॉलर का मूल्य 73.64 रुपये हो गया था. ज्ञातव्य है कि 1 जनवरी 2018 को एक डॉलर का मूल्य 63.88 था. इसका मतलब है कि जनवरी 2018 से अक्टूबर 2018 तक डॉलर के मुकाबले भारतीय रूपये में लगभग 15% की गिरावट आ गयी है.

लेकिन ऐसा नही है कि डॉलर के सापेक्ष केवल रुपया कमजोर हो रहा है, विश्व के अन्य देशों की मुद्रा जैसे ब्राजीली रियाल, चीनी युआन और अफ़्रीकी रैंड भी कमजोर हो रहे हैं. रुपया, एशिया में सबसे ज्यादा कमजोर होने वाली करेंसी बन गया है लेकिन ब्राजीली रियाल 14 फीसदी और दक्षिण अफ्रीकी रैंड 11 फीसदी तक टूट चुके हैं.

जैसा कि हम सबको पता है कि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं. उसी प्रकार रुपये के कमजोर होने के भी दो पहलू हैं. आइये इस लेख के माध्यम से जानते हैं कि रुपये के कमजोर होने के भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव पड़ रहे हैं.

रूपये के कमजोर होने के निम्न कारण हैं;

1. कच्चे तेल के दामों में वृद्धि

2. अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध

3. भारत का बढ़ता व्यापार घाटा

4. भारत से पूँजी का बहिर्गमन

5. देश में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल

6. अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि

डॉलर के कमजोर होने के सकारात्मक प्रभाव

1. भारत के निर्यातकों को लाभ

किसी मुल्क की करेंसी में गिरावट उसके लिए बुरी खबर है लेकिन एक्सपोर्ट आधारित सेक्टर्स को इस गिरावट से लाभ होता है. अमेरिकी डॉलर को पूरे विश्व में हर देश द्वारा स्वीकार किया जाता है इसलिए विश्व का 80% व्यापार अमेरिकी डॉलर में होता है.

जब विदेशी आयातक, भारत से सामान आयात करते हैं तो उन्हें एक डॉलर के बदले ज्यादा रुपये मिलते हैं जिससे वे और अधिक आयात करते हैं और भारत का निर्यात बढ़ता है जिससे देश का भुगतान संतुलन सुधरता है.

ऐसे में डॉलर को रुपया में एक्सचेंज करने पर उसकी वैल्यू बढ़ जा रही है. साथ ही एक्सपोर्ट्स जो नई डील कर रहे हैं वो नए रेट पर हो रही है, डॉलर मजबूत होने से एक्सपोर्टर्स को ज्यादा रकम मिल रही है.

यही वजह है कि भारत समेत कई एशियाई देश अपने करेंसी को गिरने दे रहे हैं क्योंकि उन्हें पेमेंट जो मिलता है वो डॉलर में होता है. ये देश चाहते हैं कि ट्रेड वॉर के चलते इनका एक्सपोर्ट कम न हो.

2. पर्यटन क्षेत्र को फायदा

जिन देशों की करेंसी का मूल्य डॉलर के सापेक्ष मूल्य घट रहा है वहां यात्रियों की संख्या में जोरदार वृद्धि हो रही है. विदेशी पर्यटकों को कम कीमत में अधिक घरेलू करेंसी मिलेगी और यात्रा का खर्च कम हो जाएगा.

रुपया कमजोर होने से विदेशी पर्यटक भारत की ओर खिंचे चले आ रहे हैं. क्योंकि भारत के लिए टूर पैकेज सस्ते हो गए हैं. टूर ऑपरेटर्स की मानें तो गिरते रुपये के चलते टूरिस्ट कारोबार इस साल बेहतर रिजल्ट दे सकता है. शुरुआती रिजल्ट अच्छे मिल भी रहे हैं, पिछले कुछ महीनों में होटल की बुकिंग में करीब 10 फीसदी की वृद्धि हुई है. हालांकि डॉलर के मजबूत होने से भारतीय लोग विदेश घूमने से कतरा रहे हैं क्य़ोंकि विदेश घूमने का पैकेज दिनों दिन महंगा होता जा एक डॉलर खाता क्या है रहा है.

3. आईटी-ऑटो सेक्टर के लिए अच्छे दिन

रूपये में गिरावट का फायदा आईटी-ऑटो सेक्टर को हो रहा है. सॉफ्टवेयर सर्विसेज एक्सपोर्ट से आईटी इंडस्ट्री को फायदा होगा क्योंकि उन्हें अब निर्यात करने पर जो डॉलर एक डॉलर खाता क्या है मिल रहे हैं उनकी वैल्यू दिनों दिन बढती जा रही है.

इसके अलावा विदेश में गाड़ियों का निर्यात करने वाली कंपनियों का रेवेन्यू भी बढ़ेगा. गौरतलब है कि इंफोसिस, टीसीएस और विप्रो जैसी बड़ी आईटी कंपनियां का मुख्यालय अमेरिका में है और वो वहां बड़े पैमाने पर कारोबार करती है.

डॉलर के कमजोर होने के नकारात्मक प्रभाव

1. चालू खाता घाटा और विपरीत भुगतान संतुलन में वृद्धि;

जैसा कि हम सभी को पता है कि भारत अपनी जरुरत का केवल 17% तेल ही पैदा करता है और बकाया का 83% आयात करता है और यही कारण है कि भारत के आयात बिल में सबसे बड़ा हिस्सा कच्चे तेल के मूल्यों का होता है.

यदि रुपया कमजोर होता है तो भारत की कच्चा तेल आयात करने वाली कंपनियों को डॉलर के रूप में अधिक भुगतान करना पड़ता है. इसलिए जब देश में डॉलर कम आता है और बाहर ज्यादा जाता है तो देश का भुगतान संतुलन विपरीत और चालू खाता घाटा बढ़ जाता है.

2. विदेशी मुद्रा भंडार में कमी:

देश के अंदर जब देश के रूपये का मूल्य घट जाता है तो इसका बड़ा कारण डॉलर की मांग की तुलना में पूर्ती कम होना होता है. ऐसी स्थिति में देश का केन्द्रीय बैंक पूँजी बाजार में डॉलर की पूर्ती बढ़ाने के लिए देश के विदेशी मुद्रा भंडार से डॉलर निकालता है जिससे देश के विदेशी मुद्रा भंडार में कमी हो जाती है. इससे भविष्य में देश के लिए आयात संकट पैदा हो सकता है और यदि भारत ने विदेशों को डॉलर में भुगतान नही किया तो वे भारत को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में डिफाल्टर भी घोषित किया करा सकते हैं जिससे कोई भी देश भारत को सामान नहीं बेचेगा.

3. देश में महंगाई का बढ़ना:

भारत अपनी जरूरत का करीब 83% पेट्रोलियम उत्पाद आयात करता है. रुपये में गिरावट से पेट्रोलियम उत्पादों का आयात महंगा हो जाएगा. इस वजह से तेल कंपनियां पेट्रोल-डीजल के भाव बढ़ा सकती हैं. जो कि आगे चलकर माल धुलाई की लागत को बढ़ा देता है जिससे फलों, सब्जियों और अन्य खाद्य पदार्थों के दाम बढ़ जाते.

एक अनुमान के मुताबिक डॉलर के भाव में एक रुपये की वृद्धि से तेल कंपनियों पर 8,000 करोड़ रुपये का बोझ पड़ता है. इससे उन्हें पेट्रोल और डीजल के भाव बढ़ाने पर मजबूर होना पड़ता है. पेट्रोलियम उत्पाद की कीमतों में 10 फीसदी वृद्धि से महंगाई करीब 0.8 फीसदी बढ़ जाती है. इसका सीधा असर खाने-पीने और परिवहन लागत पर पड़ता है.

सारांश में यह कहना ठीक है कि डॉलर की तुलना में रूपए का गिरना अंततः अर्थव्यवस्था के लिए कई सकरात्मक बदलाव के साथ साथ नकारात्मक बदलाव भी लाता है. लेकिन किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के मजबूत होने के लिए उस देश की मुद्रा का मजबूत होना बहुत जरूरी होता है. इसलिए सरकार और रिज़र्व बैंक को मिलकर रुपये की गिरावट को रोकने के प्रयास करने चाहिए.

नियमित चालू खाते

आईसीआईसीआई बैंक व्यापार बैंकिंग में आपके अपने नियमित व्यापार लेनदेनों के लिए चालू खाता उत्पादों की एक विस्तृत श्रृंखला मौजूद है। ये उत्पाद छोटे खुदरा विक्रेताओं, व्यापारियों, स्वरोजगार पेशेवरों और 2 करोड़ से कम के वार्षिक कारोबार वाले ऐसे अन्य व्यवसायों के लिए सबसे उपयुक्त हैं। आप ऐसा उत्पाद चुन सकते हैं जो आपके व्यवसाय की आवश्यकताओं के लिए सबसे अधिक उपयुक्त हो।

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  • नि:शुल्क आरटीजीएस और एनईएफटी लेनदेन
  • प्रति माह 100 नि:शुल्क चेक
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शुभारम्‍भ चालू खाता

स्वामित्व वाले स्टार्टअप उद्यमों के लिए, प‍हले 6 महीने के लिए शून्‍य औसत मासिक शेष (MAB) की आवश्यकता के साथ चालू खाता, जो खाते में बनाए रखे गए औसत मासिक शेष (MAB) के आधार पर लेनदेन लाभ प्रदान करता है।

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स्मार्ट व्यवसाय खाता

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स्मार्ट व्यवसाय खाता – गोल्‍ड

एक ऐसा चालू खाता जो खाते में बनाए रखे गए मासिक औसत शेष (MAB) के आधार पर कई प्रकार के लाभ प्रदान करता है। केवल 1, 00000 रुपए का न्यूनतम मासिक औसत शेष (MAB) बनाए रखिए और बनाए रखे गए मासिक औसत शेष (MAB) के 12 गुने तक नि:शुल्क नकद जमा प्राप्त कीजिए।

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रोमिंग चालू खाता गोल्‍ड

प्रति माह 10 लाख से कम नकद जमा आवश्यकता के साथ मध्‍यम आकार के खुदरा विक्रेताओं के लिए उपयुक्त चालू खाता। 1 लाख रुपए की न्यूनतम मासिक औसत शेष (MAB) प्रतिबद्धता पर लेनदेन लाभ उठाइए।

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एक ऐसा प्रीमियम खाता जो 50,000 रुपए की न्यूनतम मासिक औसत शेष राशि (MAB) प्रतिबद्धता पर 5 लाख रुपए तक नि:शुल्क नकद जमा की पेशकश करता है।

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रोमिंग चालू खाता क्लासिक

25,000 रु. के न्यूनतम मासिक औसत शेष (MAB) आवश्यकता के साथ स्थानीय व्यवसायों के लिए उपयुक्त चालू खाता।

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मानक रोमिंग चालू खाता

एक मानक चालू खाता जो मात्र 10,000 रु. की मासिक औसत शेष (MAB) प्रतिबद्धता के साथ आपके व्यवसाय के सुचारु संचालन को सुनिश्चित करता है।

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रुपए में ऐतिहासिक गिरावट, पहली बार डॉलर के मुकाबले 83 के नीचे फिसली इंडियन करेंसी

Rupee at Record Low: डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपए में गिरावट का दौर लगातार जारी है। आज डॉलर के मुकाबले रुपए में एतिहासिक गिरावट दर्ज की गई। पहली बार रुपया डॉलर के मुकाबले 83 के नीचे फिसल गया। जानकारों के अनुसार रुपए में आई गिरावट के पीछे अमरीका के बॉन्ड रेट में बढ़ोतरी को जिम्मेदार बताया जा रहा है। बुधवार को करेंसी बाजार के बंद होने पर रुपया 66 पैसे यानि 0.8 फीसदी की गिरावट के साथ 83.02 रुपये पर बंद हुआ। यह डॉलर के मुकाबले रुपए का सबसे निम्म स्तर है।

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डॉलर के मुकाबले रुपए में कमजोरी जारी रही तो इंपोर्ट महंगा हो सकता है। जिसके चलते चालू खाते का घाटा बढ़ने की आशंका है। मौजूदा वित्त वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही अप्रैल से जून में चालू खाते का घाटा बढ़कर 23.9 अरब डॉलर पर जा पहुंचा है जो कि जीडीपी का 2.8 फीसदी है। बोलचाल की सामान्य भाषा में समझे तो डॉलर के मुकाबले रुपए के कमजोर होने से विदेशों से आयात होने वाले जैसे कच्चे तेल और अन्य जरूरी उत्पादों की कीमत में वृद्धि हो जाती है, जिस कारण कंपनियों को मजबूरी में कीमत बढ़ानी पड़ती है। ऐसे में महंगाई और बढ़ती है।

रुपया कमजोर नहीं हो रहा, डॉलर मजबूत हो रहा है

इधर डॉलर के मुकाबले रुपए के कमजोर होने के पीछे डॉलर को मजबूत होना बताया जा रहा है। अभी हाल में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का एक बयान सामने आया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि रुपया नहीं कमजोर हो रहा, डॉलर मजबूत हो रहा है। वित्त मंत्री के इस बयान पर खूब किरकिरी हुई थी। हालांकि जानकारों की राय भी यही है।

हालात नहीं सुधरे तो 2023 तक 85 पर पहुंच जाएगा रुपया

भारत सरकार के 10 साल के बॉन्ड पर यील्ड बढ़कर 7.4510 फीसदी हो गया है। जानकारों के मुताबिक 82.40 रुपये पर आरबीआई ने दखल देकर रुपये को गिरने से संभालने की कोशिश की थी। लेकिन माना जा रहा है कि आरबीआई ने दखल नहीं दिया तो रुपये में गिरावट का सिलसिला जारी रह सकता है। जानकारों की राय में मार्च 2023 तक रुपया 85 के लेवल तक आ सकता है। इससे आने वाले दिनों में महंगाई के और बढ़ने की आशंका को खारिज नहीं किया जा सकता है।

रुपये के कमजोर होने से भारतीय अर्थव्यवस्था को होने वाले फायदे और नुकसान

1 जनवरी 2018 को एक डॉलर का मूल्य 63.88 था. इसका मतलब है कि जनवरी 2018 से अक्टूबर 2018 तक डॉलर के मुकाबले भारतीय रूपये में लगभग 15% की गिरावट आ गयी है. इस लेख में हम यह बताने जा रहे हैं कि रुपये की इस गिरावट का भारत की अर्थव्यवस्था पर क्या सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है.

Falling Indian Currency

भारत में इस समय सबसे अधिक चर्चा अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारत के गिरते रुपये के मूल्य की हो रही है. अक्टूबर 12, 2018 को जब बाजार खुला तो भारत में एक डॉलर का मूल्य 73.64 रुपये हो गया था. ज्ञातव्य है कि 1 जनवरी 2018 को एक डॉलर का मूल्य 63.88 था. इसका मतलब है कि जनवरी 2018 से अक्टूबर 2018 तक डॉलर के मुकाबले भारतीय रूपये में लगभग 15% की गिरावट आ गयी है.

लेकिन ऐसा नही है कि डॉलर के सापेक्ष केवल रुपया कमजोर हो रहा है, विश्व के अन्य देशों की मुद्रा जैसे ब्राजीली रियाल, चीनी युआन और अफ़्रीकी रैंड भी कमजोर हो रहे हैं. रुपया, एशिया में सबसे ज्यादा कमजोर होने वाली करेंसी बन गया है लेकिन ब्राजीली रियाल 14 फीसदी और दक्षिण अफ्रीकी रैंड 11 फीसदी तक टूट चुके हैं.

जैसा कि हम सबको पता है कि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं. उसी प्रकार रुपये के कमजोर होने के भी दो पहलू हैं. आइये इस लेख के माध्यम से जानते हैं कि रुपये के कमजोर होने के भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव पड़ रहे हैं.

रूपये के कमजोर होने के निम्न कारण हैं;

1. कच्चे तेल के दामों में वृद्धि

2. अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध

3. भारत का बढ़ता व्यापार घाटा

4. भारत से पूँजी का बहिर्गमन

5. देश में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल

6. अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि

डॉलर के कमजोर होने के सकारात्मक प्रभाव

1. भारत के निर्यातकों को लाभ

किसी मुल्क की करेंसी में गिरावट उसके लिए बुरी खबर है लेकिन एक्सपोर्ट आधारित सेक्टर्स को इस गिरावट से लाभ होता है. अमेरिकी डॉलर को पूरे विश्व में हर देश द्वारा स्वीकार किया जाता है इसलिए विश्व का 80% व्यापार अमेरिकी डॉलर में होता है.

जब विदेशी आयातक, भारत से सामान आयात करते हैं तो उन्हें एक डॉलर के बदले ज्यादा रुपये मिलते हैं जिससे वे और अधिक आयात करते हैं और भारत का निर्यात बढ़ता है जिससे देश का भुगतान संतुलन सुधरता है.

ऐसे में डॉलर को रुपया में एक्सचेंज करने पर उसकी वैल्यू बढ़ जा रही है. साथ ही एक्सपोर्ट्स जो नई डील कर रहे हैं वो नए रेट पर हो रही है, डॉलर मजबूत होने से एक्सपोर्टर्स को ज्यादा रकम मिल रही है.

यही वजह है कि भारत समेत कई एशियाई देश अपने करेंसी को गिरने दे रहे हैं क्योंकि उन्हें पेमेंट जो मिलता है वो डॉलर में होता है. ये देश चाहते हैं कि ट्रेड वॉर के चलते इनका एक्सपोर्ट कम न हो.

2. पर्यटन क्षेत्र को फायदा

जिन देशों की करेंसी का मूल्य डॉलर के सापेक्ष मूल्य घट रहा है वहां यात्रियों की संख्या में जोरदार वृद्धि हो रही है. विदेशी पर्यटकों को कम कीमत में अधिक घरेलू करेंसी मिलेगी और यात्रा का खर्च कम हो जाएगा.

रुपया कमजोर होने से विदेशी पर्यटक भारत की ओर खिंचे चले आ रहे हैं. क्योंकि भारत के लिए टूर पैकेज सस्ते हो गए हैं. टूर ऑपरेटर्स की मानें तो गिरते रुपये के चलते टूरिस्ट कारोबार इस साल बेहतर रिजल्ट दे सकता है. शुरुआती रिजल्ट अच्छे मिल भी रहे हैं, पिछले कुछ महीनों में होटल की बुकिंग में करीब 10 फीसदी की वृद्धि हुई है. हालांकि डॉलर के मजबूत होने से भारतीय लोग विदेश घूमने से कतरा रहे हैं क्य़ोंकि विदेश घूमने का पैकेज दिनों दिन महंगा होता जा रहा है.

3. आईटी-ऑटो सेक्टर के लिए अच्छे दिन

रूपये में गिरावट का फायदा आईटी-ऑटो सेक्टर को हो रहा है. सॉफ्टवेयर सर्विसेज एक्सपोर्ट से आईटी इंडस्ट्री को फायदा होगा क्योंकि उन्हें अब निर्यात करने पर जो डॉलर मिल रहे हैं उनकी वैल्यू दिनों दिन बढती जा रही है.

इसके अलावा विदेश में गाड़ियों का निर्यात करने वाली कंपनियों का रेवेन्यू भी बढ़ेगा. गौरतलब है कि इंफोसिस, टीसीएस और विप्रो जैसी बड़ी आईटी कंपनियां का मुख्यालय अमेरिका में है और वो वहां बड़े पैमाने पर कारोबार करती है.

डॉलर के कमजोर होने के नकारात्मक प्रभाव

1. चालू खाता घाटा और विपरीत भुगतान संतुलन में वृद्धि;

जैसा कि हम सभी को पता है कि भारत अपनी जरुरत का केवल 17% तेल ही पैदा करता है और बकाया का 83% आयात करता है और यही कारण है कि भारत के आयात बिल में सबसे बड़ा हिस्सा कच्चे तेल के मूल्यों का होता है.

यदि रुपया कमजोर होता है तो भारत की कच्चा तेल आयात करने वाली कंपनियों को डॉलर के रूप में अधिक भुगतान करना पड़ता है. इसलिए जब देश में डॉलर कम आता है और बाहर ज्यादा जाता है तो देश का भुगतान संतुलन विपरीत और चालू खाता घाटा बढ़ जाता है.

2. विदेशी मुद्रा भंडार में कमी:

देश के अंदर जब देश के रूपये का मूल्य घट जाता है तो इसका बड़ा कारण डॉलर की मांग की तुलना में पूर्ती कम होना होता है. ऐसी स्थिति में देश का केन्द्रीय बैंक पूँजी बाजार में डॉलर की पूर्ती बढ़ाने के लिए देश के विदेशी मुद्रा भंडार से डॉलर निकालता है जिससे देश के विदेशी मुद्रा भंडार में कमी हो जाती है. इससे भविष्य में देश के लिए आयात संकट पैदा हो सकता है और यदि भारत ने विदेशों को डॉलर में भुगतान नही किया तो वे भारत को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में डिफाल्टर भी घोषित किया करा सकते हैं जिससे कोई भी देश भारत को सामान नहीं बेचेगा.

3. देश में महंगाई का बढ़ना:

भारत अपनी जरूरत का करीब 83% पेट्रोलियम उत्पाद आयात करता है. रुपये में गिरावट से पेट्रोलियम उत्पादों का आयात महंगा हो जाएगा. इस वजह से तेल कंपनियां पेट्रोल-डीजल के भाव बढ़ा सकती हैं. जो कि आगे चलकर माल धुलाई की लागत को बढ़ा देता है जिससे फलों, सब्जियों और अन्य खाद्य पदार्थों के दाम बढ़ जाते.

एक अनुमान के मुताबिक डॉलर के भाव में एक रुपये की वृद्धि से तेल कंपनियों पर 8,000 करोड़ रुपये का बोझ पड़ता है. इससे उन्हें पेट्रोल और डीजल के भाव बढ़ाने पर मजबूर होना पड़ता है. पेट्रोलियम उत्पाद की कीमतों में 10 फीसदी वृद्धि से महंगाई करीब 0.8 फीसदी बढ़ जाती है. इसका सीधा असर खाने-पीने और परिवहन लागत पर पड़ता है.

सारांश में यह कहना ठीक है कि डॉलर की तुलना में रूपए का गिरना अंततः अर्थव्यवस्था के लिए कई सकरात्मक बदलाव के साथ साथ नकारात्मक बदलाव भी लाता है. लेकिन किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के मजबूत होने के लिए उस देश की मुद्रा का मजबूत होना बहुत जरूरी होता है. इसलिए सरकार और रिज़र्व बैंक को मिलकर रुपये की गिरावट को रोकने के प्रयास करने चाहिए.

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