विदेशी मुद्रा क्यू एंड ए

अब आते हैं अपने प्रमुख सवाल पर। यानी डॉलर के दबदबे को कम करने के लिए चीन-रूस की स्ट्रैटजी क्या है? सबसे पहले बात रूस की.
अमेरिकी डॉलर को रौंद रही रूस-चीन की स्ट्रैटजी: पुतिन ने सस्ता तेल बेचा, जिनपिंग विदेशी मुद्रा क्यू एंड ए ने सस्ता कर्ज बांटा; भारत भी अहम किरदार
24 फरवरी को यूक्रेन पर हमला करते ही रूस पर प्रतिबंधों की बाढ़ आ गई। अमेरिकी डॉलर में कारोबार न कर पाने का संकट खड़ा हो गया। रूसी करेंसी रूबल की वैल्यू धड़ाम हो गई। रूस की इकोनॉमी तबाह होने की भविष्यवाणियां होने लगीं, लेकिन पुतिन तो जैसे इसी मौके के इंतजार में थे। उन्होंने जिनपिंग के साथ एक ऐसी स्ट्रैटजी को एक्टिवेट कर दिया, जिसकी तैयारी दोनों पिछले कई सालों से कर रहे थे। ये स्ट्रैटजी दुनिया से अमेरिका डॉलर के दबदबे को खत्म कर सकती है।
भास्कर एक्सप्लेनर में हम रूस-चीन की उसी स्ट्रैटजी को आसान भाषा में जानेंगे, लेकिन उससे पहले 2 सवालों के जवाब जान लेना जरूरी है.
सवाल- 1: अमेरिकी डॉलर दुनिया की सबसे मजबूत करेंसी कैसे बन गई?
चीन-ताइवान सैन्य तनाव और फेड विराम की उम्मीदों पर सोना बढ़ा
सोना (XAU/USD-स्पॉट) चीन-ताइवान सैन्य तनाव और फेड/पॉवेल विराम की उम्मीदों के कारण गुरुवार को 1795.29 के आसपास 4 सप्ताह के उच्च स्तर पर पहुंच गया। गोल्ड 27 जुलाई को फेड की बैठक के बाद पहले से ही उत्साहित था, जिसमें फेड ने सर्वसम्मति से उम्मीद के मुताबिक विदेशी मुद्रा क्यू एंड ए +0.75% बढ़ोतरी की, पॉवेल की क्यू एंड ए वार्ता से बाजार ने अनुमान विदेशी मुद्रा क्यू एंड ए लगाया कि फेड धीमा हो सकता है या सितंबर, नवंबर में विराम भी ले सकता है। , और दिसंबर। लेकिन पॉवेल के प्रेसर (क्यू एंड ए) के विवरण और विभिन्न फेड नीति निर्माताओं के बाद के बयानों से पता चलता है कि फेड अगस्त और सितंबर के लिए मुद्रास्फीति प्रक्षेपवक्र के आधार पर सितंबर में +0.75% या +0.50% बढ़ोतरी के रास्ते पर है। इसके अलावा फेड नवंबर और दिसंबर में @ 0.50% की बढ़ोतरी कर सकता है यदि मुद्रास्फीति की प्रवृत्ति मौजूदा स्तर पर रहती है; अन्यथा, फेड @+0.25% की वृद्धि जारी रख सकता है यदि मुद्रास्फीति सार्थक रूप से शांत हो जाती है या @+0.75% यदि यह और उबलती है।
EXPLAINER: डॉलर क्यों महंगा हो रहा है और रुपया समेत दुनियाभर की करेंसी फिसल रही है?
EXPLAINER: अभी की महंगाई में डिमांड और सप्लाई दोनों का रोल है. डॉलर का प्रदर्शन इसलिए मजबूत हो रहा है कि, क्योंकि दुनियाभर की इकोनॉमी की हालत खराब है. वहां की करेंसी की वैल्यु भी घट रही है. डॉलर को इससे डबल बेनिफिट मिल रहा है.
पूरी दुनिया की करेंसी इस समय दबाव में है. एकमात्र अमेरिकन डॉलर मजबूती के विदेशी मुद्रा क्यू एंड ए साथ आगे बढ़ रहा है. डॉलर के मुकाबले रुपया 82 के स्तर को पार कर चुका है. अलग-अलग सर्वे के मुताबिक, यह 83 से 84 के स्तर तक फिसल सकता है. इस साल अब तक रुपए में 10 फीसदी की गिरावट आ चुकी है. ऐसे में यह सवाल उठता है कि आखिर क्या वजह है कि दुनियाभर की करेंसी फिसल रही है, जबकि डॉलर लगातार मजबूत हो रहा है. Credence Wealth Advisors के फाउंडर कीर्तन ए शाह की मदद से इस आर्टिकल में यह भी जानने की कोशिश करेंगे कि दुनिया की दूसरी करेंसी के मुकाबले रुपए का प्रदर्शन कितना मजबूत या कमजोर है.
कोरोना महामारी से हुई इसकी शुरुआत
इसकी शुरुआत साल 2020 में हुआ जब कोरोना वायरस ने दस्तक दिया. महामारी के दौरान हर तरह की आर्थिक गतिविधि रोक दी गई जिसके कारण जीडीपी में गिरावट आई. इसके अलावा बड़े पैमाने पर रोजगार गए और कंपनियों को भारी नुकसान हुआ. आर्थिक गतिविधियों में सुधार के मकसद से दुनियाभर के सेंट्रल बैंकों ने इंट्रेस्ट रेट में कटौती की और लिक्विडिटी बढ़ाने पर फोकस किया. डेवलप्ड विदेशी मुद्रा क्यू एंड ए विदेशी मुद्रा क्यू एंड ए इकोनॉमी में इंट्रेस्ट रेट घटकर करीब जीरो पर आ गया है, जबकि रिजर्व बैंक ने रेपो रेट घटाकर 4 फीसदी तक कर दिया था.
कर्ज मिलना आसान हो गया और हर किसी के हाथ में पैसे आ गए. कोरोना महामारी के दौरान शेयर बाजार में जो भारी गिरावट आई थी वह अब लोगों का फेवरेट डेस्टिनेशन बन गया. लिक्विडिटी बढ़ने के बाद सारा पैसा शेयर बाजार और कमोडिटी की तरफ जाने लगा और दोनों रिकॉर्ड हाई पर पहुंच गया. जब इंट्रेस्ट रेट घटता है तो बॉन्ड यील्ड भी घटने लगता है.
डिमांड आधारित है यह महंगाई
यील्ड घट गया, स्टॉक मार्केट और कमोडिटी प्राइस आसमान पर पहुंच गया जिसके कारण महंगाई बढ़ गई. इसे डिमांड आधारित महंगाई कहते हैं. यह ऐसी महंगाई होती है जिसमें एक्सेस डिमांड का सबसे बड़ा रोल होता है. चीन दुनिया का सबसे बड़ा मैन्युफैक्चरर है. उसने कोरोना पर कंट्रोल करने के लिए लॉकडाउन को लंबे समय तक गंभीरता से लागू किया. इसस सप्लाई की समस्या पैदा हो गई. इससे महंगाई को सपोर्ट मिला. फरवरी 2022 में रूस ने यूक्रेन पर हमला विदेशी मुद्रा क्यू एंड ए कर दिया जिसके कारण कच्चा तेल आसमान पर पहुंच गया. इससे महंगाई की आग को और हवा मिली. यूरोप में गैस की किल्लत पैदा हो गई जिससे भी महंगाई को सपोर्ट मिला.
कुल मिलाकर अभी की महंगाई डिमांड आधारित और यूक्रेन क्राइसिस के कारण सप्लाई आधारित भी है. महंगाई का हाल ये है कि अमेरिका और इंग्लैंड में विदेशी मुद्रा क्यू एंड ए इंफ्लेशन टार्गेट 2 फीसदी है जो 9-10 फीसदी पर पहुंच गया है. रिजर्व बैंक ने मॉनिटरी पॉलिसी पर नियंत्रण बनाए रखा जिसके कारण 6 फीसदी की महंगाई का लक्ष्य 7 फीसदी के नजदीक है.
मांग में कमी के लिए इंट्रेस्ट रेट में बढ़ोतरी
महंगाई को काबू में लाने के लिए फेडरल रिजर्व, बैंक ऑफ इंग्लैंड, यूरोपियन सेंट्रल बैंक समेत दुनिया के सभी सेंट्रल बैंक इंट्रेस्ट रेट में भारी बढ़ोतरी कर रहे हैं जिससे मांग में कमी आए. इंट्रेस्ट रेट में बढ़ोतरी के कारण फिक्स्ड इनकम के प्रति आकर्षण बढ़ा और शेयर बाजार के प्रति आकर्षण घटा है. इसलिए दुनियाभर के शेयर बाजार में गिरावट है और बॉन्ड यील्ड उछल रहा है.
महंगाई बढ़ने से करेंसी की खरीद क्षमता घट जाती है. डॉलर के मुकाबले दुनिया की तमाम करेंसी में गिरावट आई है. जब कोई सेंट्रल बैंक इंट्रेस्ट रेट बढ़ाता है जो इसका मतलब होता है कि वहां की इकोनॉमी मजबूत स्थिति में है. इकोनॉमी को लेकर मजबूती के संकेत मिलने पर उस विदेशी मुद्रा क्यू एंड ए देश की करेंसी भी मजबूत हो जाती है. एक्सपर्ट का कहना है कि डॉलर का प्रदर्शन ज्यादा मजबूत दिख रहा है, क्योंकि कोरोना के बाद दुनिया की तमाम इकोनॉमी की हालत तो खराब है ही और उनकी करेंसी की वैल्यु भी घटी है. इसके कारण डॉलर को डबल मजबूती मिल रही है.
फेरा और फेमा में क्या अंतर होता है?
सन 1973 में विदेशी विनिमय नियमन अधिनियम(FERA)पारित किया गया, जिसका मुख्य उद्येश्य विदेशी मुद्रा का सदुपयोग सुनिश्चित करना था. लेकिन यह कानून देश के विकास में बाधक बन गया था इस कारण दिसम्बर 1999 में संसद के दोनों सदनों द्वारा फेमा प्रस्तावित किया गया था. राष्ट्रपति के अनुमोदन के बाद 1999 में फेमा प्रभाव विदेशी मुद्रा क्यू एंड ए में आ गया.
ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में विदशी मुद्रा बहुत ही सीमित विदेशी मुद्रा क्यू एंड ए मात्रा में होती थी; इस कारण सरकार देश में इसके आवागमन पर नजर रखती थी. सन 1973 में विदेशी विनिमय नियमन अधिनियम (FERA) पारित किया गया, जिसका मुख्य उद्येश्य विदेशी मुद्रा का सदुपयोग सुनिश्चित करना था. लेकिन यह कानून देश के विकास में बाधक बन गया था इस कारण सन 1997-98 के बजट में सरकार ने फेरा-1973 के स्थान पर फेमा (विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम) को लाने का प्रस्ताव रखा था. दिसम्बर 1999 में संसद के दोनों सदनों द्वारा फेमा पास किया गया था. राष्ट्रपति के अनुमोदन के बाद जून 1, 2000 को फेमा प्रभाव में आ गया था.
फेरा क्या है?
फेरा कानून का मुख्य कार्य विदेशी भुगतान पर नियंत्रण लगाना, पूँजी बाजार में काले धन पर नजर रखना, विदेशी मुद्रा के आयात और निर्यात पर नजर रखना और विदेशियों द्वारा अचल संपत्तियों की खरीद को नियंत्रित करना था. इस कानून को देश में तब लागू किया गया था जब देश का विदेशी पूँजी भंडार बहुत ही ख़राब हालत में था. इसका उद्देश्य विदेशी मुद्रा के संरक्षण और अर्थव्यवस्था के विकास में उसका सही उपयोग करना था.
फेमा क्या है?
फेमा का महत्वपूर्ण लक्ष्य विदेशी मुद्रा से संबंधित सभी कानूनों का संशोधन और एकीकरण करना है. इसके अलावा फेमा का लक्ष्य देश में विदेशी मुद्रा क्यू एंड ए विदेशी भुगतान और व्यापार को बढ़ावा देना, विदेशी पूँजी और निवेश को देश में बढ़ावा देना ताकि औद्योगिक विकास और निर्यात को बढ़ावा दिया जा सके. फेमा भारत में विदेशी मुद्रा बाजार के रखरखाव और सुधार को प्रोत्साहित करता है.
फेमा भारत में रहने वाले एक व्यक्ति को पूरी स्वतंत्रता प्रदान करता है कि वह भारत के बाहर संपत्ति को खरीद सकता है मालिक बन सकता है और उसका मालिकाना हक़ भी किसी और को दे सकता है.
आइये जानते हैं कि फेरा और फेमा में क्या अंतर है.
नतीजे : सील तोड़ सेक्सी
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