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प्रतिस्पर्धी रणनीति क्या है

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अल्पाधिकार क्या है ? अल्पाधिकार की विशेषताएं

अल्पाधिकार अपूर्ण प्रतियोगिता का एक महत्वपूर्ण रूप है। अल्पाधिकार उस स्थिति को कहा जाता है जिसमें किसी वस्तु के दो या दो से अधिक (परन्तु बहुत अधिक नहीं) उत्पादक या विक्रेता होते हैं। यद्यपि कुछ या अधिक फर्मों के मध्य कोई सीमा निर्धारण कठिन है। परन्तु यदि एक वस्तु के उत्पादकों की संख्या दो से दस तक हो तो इस स्थिति को अल्पाधिकार कहा जाता है। जब कुछ विक्रेताओं की वस्तुएं समान हो तो उसे शुद्ध अल्पाधिकार कहा जाता है। दूसरी ओर जब विभिन्न विक्रेताओं या फर्मों की वस्तुएं विभेदीकृत परन्तु एक-दूसरे के निकट स्थानापन्न हैं तो इसे अपूर्ण अल्पाधिकार कहा जाता है।

अल्पाधिकार का अर्थ

अल्पाधिकार से अभिप्राय बाजार की उस परिस्थिति से है जब किसी उद्योग में सीमित मात्रा में फर्में होती है। प्रत्येक फर्म ऐसे उत्पाद का उत्पादन करती है जो कि अन्य फर्मों के उत्पाद का निकट स्थानापन्न या समरूप हो सकता है। इस तरह के अल्पाधिकार को विशुद्ध अल्पाधिकार का नाम दिया जाता है। यदि अल्पाधिकार फर्में विभेदीक्रत उत्पाद का उत्पादन करें तो इस परिस्थिति को विभेदीकरण अल्पाधिकार का नाम दिया जाता है। अल्पाधिकार में प्रत्येक फर्म प्रतिस्पर्धी फर्मों के व्यवहार को ध्यान में रखते हुए अपनी कीमत उत्पादन मात्रा की नीति निर्धारित करती है।

अल्पाधिकार की विशेषताएँ

1. थोड़े विक्रेता

अल्पाधिकार बाजार में थोड़े अथवा कम संख्या में विक्रेता होते हैं। विक्रेताओं की संख्या इतनी कम होती है कि प्रत्येक फर्म का बाजार में भाग इतना बड़ा होता है कि वह कीमत को और विरोधी फर्मों की व्यावसायिक रणनीति को प्रभावित कर सकते हैं।

2. पूर्ति पर नियंत्रण

इस बाजार में प्रत्येक फर्म उत्पादों का काफी बड़े पैमाने पर उत्पादन करती है । वह बाजार में कुल पूर्ति का काफी बड़ा अनुपात होता है। परिणामस्वरूप फर्म को कुछ अंश तक एकाधिकार शक्ति प्राप्त होती है और वह कीमत तथा कुल बाजार पूर्ति पर कुछ नियंत्रण कर सकती है।

3. फर्मों की परस्पर निर्भरता

इस बाजार में क्योंकि फर्मों की संख्या थोड़ी कम होती है और प्रत्येक फर्म का कीमत अथवा पूर्ति पर कुछ हद तक नियंत्रण होता है। एक फर्म के द्वारा कीमत और उत्पादन में किए गए परिवर्तनों का विरोधी फर्मों पर प्रभाव पड़ता है। इस प्रकार अल्पाधिकार बाजार में व्यावसायिक फर्मों की रणनीतियाँ अन्य फर्मों में भिन्न-भिन्न प्रकार की प्रतिक्रियाएँ पैदा करती हैं। प्रतिस्पर्धी रणनीति क्या है इससे स्पष्ट होता है कि अल्पाधिकार बाजार में फर्मों में परस्पर निर्भरता पाई जाती है।

4. उत्पादों का स्वरूप

उत्पादों के स्वरूप के आधर पर अल्पाधिकार को शुद्ध और विभेदीकृत अल्पाधिकार श्रेणियों में बाँटा जा सकता है। शुद्ध अल्पाधिकार वह है जिसमें प्रतियोगी फर्मों द्वारा पैदा किए गए उत्पाद समरूप होते हैं। विभेदीकृत अल्पाधिकार बाजार में समरूप अथवा विभेदीकृत वस्तुओं का उत्पादन होता है।

5. बिक्री लागतों की भूमिका

अल्पाधिकारी उत्पादों की कीमत नीति में विज्ञापन, प्रचार एवं बिक्री बढ़ाने की अन्य विधियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। उपभोक्ताओं को अपनी ओर आकर्षित करने और अधिक लाभ कमाने की प्रेरणा से अल्पाधिकारी बाजार में फर्में यह सब काम करती हैं।

6. कीमत जड़ता

अल्पाधिकारी फर्में बहुत सोच समझकर प्रतिस्पर्धी फर्मों के साथ विचार-विमर्श कर एवं एक आयोजित रणनीति के अंतर्गत ही अपने उत्पादों की कीमत निर्धारित करती हैं। अतः एक बार जब ऐसी कीमत निश्चित कर दी जाती है तो इसे बार-बार बदला नहीं जाता अल्पाधिकारी फर्म अपने उत्पाद की कीमत कम भी नहीं करना चाहती क्योंकि वह जानती है कि प्रतिक्रिया में प्रतिस्पर्धी फर्में भी कीमतें कम कर देंगी और कीमत युद्ध आरंभ हो जाएगा। इसी तरह अल्पाधिकार फर्में कीमत बढ़ाएगी तो उस फर्म का उत्पाद बाजार में बिक नहीं पाएगा। परिणामस्वरूप अल्पाधिकार फर्मों की कीमतों में सापेक्ष रूप से बदलाव नहीं आते।

7. समूह व्यवहार

अल्पाधिकारी फर्म द्वारा लिए जाने वाले उत्पादन की मात्रा एवं कीमतों से संबंधित निर्णय से सभी प्रतिस्पर्धी फर्में प्रभावित होती हैं। इस परस्पर निर्भरता के कारण सभी फम्रें परस्पर सहयोग पर भी विचार करती हैं। आपसी समझौते एवं सहयोग के सहारे सभी फर्में अध्कि लाभ कमाने का प्रयास करती हैं। इसीलिए प्रायः अल्पाधिकारी फर्मों द्वारा व्यत्तिफगत निर्णय ना लेकर सामूहिक निर्णय लिए जाते हैं।

8. सुनिश्चित माँग वक्र

अल्पाधिकार की अन्य प्रमुख विशेषता यह है कि अल्पाधिकारी फर्म कभी भी अपनी बिक्री का सम्पूर्ण पूर्वानुमान नहीं लगा सकती। ऐसी फर्म अपने उत्पाद के माँग वक्र की प्रकृति एवं स्थिति के बारे में सुनिश्चित नहीं हो सकती। किसी एक फर्में द्वारा जब अपने उत्पाद की कीमत अथवा उत्पादन की मात्रा बदली जाती है तो प्रक्रिया में प्रतिस्पर्धी फर्में भी युत्तिफसंगत कदम उठाती है। परिणामस्वरूप अल्पाधिकार का माँग वक्र सुनिश्चित नहीं हो सकता।

अल्पाधिकार के स्रोत

1. बड़े पैमाने के उत्पादन की बचतें

फर्मों की संख्या थोड़ी होने के कारण वह बड़े पैमाने पर उत्पादन करती हैं और सम्पूर्ण बाजार माँग बहुत कम इकाई लागत पर पूरा कर सकती है। इस तुलना में बड़ी संख्या में उत्पादक छोटे पैमाने पर उत्पादन ऊँची इकाई लागत पर करते हैं। पैमाने की बचतों के कारण बाजार में वर्तमान फर्मों को निश्चित लागत लाभ प्राप्त होता है। यह बाजार में संभावित फर्मों के प्रवेश पर रोक का भी काम करती है।

2. भारी पूँजी आवश्यकता

कई उद्योगों जैसे लोहा और इस्पात, भारी इंजीनियरिंग उद्योग, रसायन, ऽाद इत्यादि उद्योगों में पूँजी गहनता बहुत अध्कि होती है। उन उद्योगों में ना केवल शुरू का पूँजी ऽर्च बहुत भारी होता है, उनमें कार्यात्मक तथा रखरखाव की लागत भी काफी ऊँची होती है। इस तरह नई फर्मों के प्रवेश पर भारी पूँजी आवश्यकता एक दुर्गम रोक है और बाजार में थोड़ी संख्या में फर्में काम करती रहती हैं।

3. उत्पाद विभेदीकरण

उत्पाद विभेदीकरण बाजार में फर्मों के प्रवेश पर एक प्रमुख रोक है। बाजार में वर्तमान फर्में संभवतः उत्पाद की विभिन्न किस्मों को तैयार करती हैं। यदि नई फर्मों की अपनी उत्पाद किस्में ना हो तो वह अन्य फर्मों से ग्राहकों को आकर्षित नहीं कर सकती। परिणामस्वरूप थोड़ी संख्या में फर्मों का कार्य करना जारी रह सकता है और बाजार की संरचना अल्पाधिकारिक बनी रहती है।

4. विलय और स्वामित्व अधिग्रहण

कई बार बाजार में विभिन्न फर्मों का आपस में विलय हो जाता है अथवा एक बड़ी और वित्तीय दृष्टि से सुदृढ़ फर्म प्रतियोगिता को समाप्त करने के लिए अन्य फर्म का स्वामित्व अधिग्रहण कर लेती है। ऐसे प्रबंध से बाजार में ढाँचें का दो प्रकार से रूपांतरण हो जाता है, पहला इनसे फर्मों में प्रतियोगिता समाप्त हो जाती है और दूसरा उनसे उत्पादन के केंद्रीयकरण में वृद्धि हो जाती है। फर्मों के ऐसे संयोग नई फर्मों के प्रवेश पर प्रभावपूर्ण अवरोध् लगाकर अधिक लाभ पैदा करने में सफल हो जाते हैं। परिणामस्वरूप बाजार में फर्मों की संख्या कम रहती है जिससे अल्पाधिकार का उदय होता है।

अल्पाधिकारी बाजार के माॅडल

  1. कूनों, बरद्रेन्ड़ तथा एजवर्थ द्वारा प्रतिपादित प्रतिष्ठित माॅडल
  2. कीमत नेतृत्व माॅडल
  3. कपट सन्धायी अल्पाधिकारी माॅडल
  4. विकुंचन मांग अल्पाधिकारी माॅडल

1. कूर्नो माॅडल

आज से 150 वर्ष पूर्व आॅग्सटीन कूर्नो ने अल्पाधिकारी बाजार के व्यवहार का माॅडल प्रस्तुत किया था यह माॅडल तीन मान्यताओं पर आधरित है-

  1. केवल दो ही फर्में बाजार में हैं अर्थात् द्वैदाध्किार है।
  2. दोनों फर्मों का मुख्य उद्देश्य लाभ को अधिकतम करना है।
  3. प्रत्येक फर्म दूसरी फर्म के उत्पाद को देखकर उत्पादन करती है अर्थात् प्रत्येक फर्म दूसरी फर्म की क्रिया को देखकर प्रतिक्रिया करती है।

2. स्टैकलबर्ग माॅडल

स्टैकलबर्ग माॅडल कूर्नो माॅडल में यह माना गया है कि बाजार में दो फर्में हैं तथा एक साथ उत्पाद की मात्रा का निर्धारण करती है जबकि स्टैकलबर्ग माॅडल इस मान्यता पर आधारित है कि फर्में एक साथ उत्पाद की मात्रा के निर्धारण का निर्णय नहीं लेते हैं। पहले एक फर्म उत्पाद का निर्धरक करती है फिर दूसरी फर्म प्रवेश करती है। स्टैकलबर्ग माॅडल कई मान्यताओं पर आधारित है-

मारुति सुजुकी बाजार हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए दोतरफा रणनीति अपनाएगी

नयी दिल्ली, 10 जुलाई (भाषा) मारुति सुजुकी इंडिया (एमएसआई) अपनी बाजार हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए दोतरफा रणनीति पर काम कर रही है। इसके तहत गैर-एसयूवी खंड में अपनी बाजार हिस्सेदारी को बचाने और बढ़ाने पर जोर दिया जाएगा। साथ ही एसयूवी खंड में विस्तार की पूरी कोशिश की जाएगी, जहां कंपनी फिलहाल प्रतिस्पर्धा में पीछे है। कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने यह जानकारी दी। कंपनी के पास इस समय गैर-एसयूवी खंड में 67 प्रतिशत बाजार हिस्सेदारी है, जो दो दशक में सबसे अधिक है। दूसरी ओर तेजी से बढ़ते एसयूवी खंड में उसकी कुल बाजार हिस्सेदारी 13 प्रतिशत के आसपास

कंपनी के पास इस समय गैर-एसयूवी खंड में 67 प्रतिशत बाजार हिस्सेदारी है, जो दो दशक में सबसे अधिक है। दूसरी ओर तेजी से बढ़ते एसयूवी खंड में उसकी कुल बाजार हिस्सेदारी 13 प्रतिशत के आसपास है।

एमएसआई के वरिष्ठ कार्यकारी निदेशक (विपणन एवं बिक्री) शशांक श्रीवास्तव ने पीटीआई-भाषा कहा, ‘‘मकसद एकदम साफ है, हमें अधिक एसयूवी हिस्सेदारी हासिल करते हुए गैर-एसयूवी खंड में बाजार हिस्सेदारी को बचाने और बढ़ाने की जरूरत है। यह बहुत ही सरल और स्पष्ट लक्ष्य है।’’

उन्होंने कहा कि एसयूवी खंड में कंपनी की योजना नए मॉडल पेश करने की है, जबकि गैर-एसयूवी क्षेत्र, जिसमें हैचबैक, सेडान और वैन शामिल हैं, में नई सुविधाओं, प्रौद्योगिकी और आकर्षक डिजाइन को बढ़ावा दिया जाएगा।

यह पूछने पर कि क्या कंपनी एक नई शुरुआती स्तर की कार लाने पर भी विचार करेगी, उन्होंने कहा: ‘‘इसकी संभावना है, लेकिन हमें अपनी योजना को अंतिम रूप देना होगा. हम अपनी बाजार हिस्सेदारी को बचाने के लिए कुछ भी करेंगे।’’

एमएसआई पहले ही एसयूवी क्षेत्र में कई उपाय कर रही है, जिसमें तेजी से उभरते उप-वर्गों में ग्राहकों की मांग को पूरा करने के लिए उत्पादों की पेशकश शामिल है।

श्रीवास्तव ने कहा कि कंपनी के पास एसयूवी खंड प्रतिस्पर्धी रणनीति क्या है में सिर्फ दो मॉडल हैं, जबकि इस खंड में इस समय कुल 48 उत्पाद हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘असली कमजोरी मध्यम आकार के एसयूवी खंड में है, जहां हमारी बाजार हिस्सेदारी महज तीन फीसदी है।’’

मध्यम आकार के एसयूवी खंड में हुंदै, क्रेटा और किआ सेल्ट्रोज का दबदबा है।

कंपनी का लक्ष्य घरेलू यात्री कार बाजार में एक बार फिर 50 प्रतिशत से अधिक बाजार हिस्सेदारी हासिल करना है। पिछले वित्त वर्ष के अंत में मारुति सुजुकी की बाजार हिस्सेदारी करीब 43 प्रतिशत थी।

रिलेशनशिप मार्केटिंग

रिलेशनशिप मार्केटिंग , या Relationship marketing — यह एक व्यावसायिक रणनीति है जिसका प्रतिस्पर्धी रणनीति क्या है उद्देश्य प्रमुख व्यावसायिक आंकड़ों — ग्राहकों और व्यावसायिक भागीदारों के साथ दीर्घकालिक संबंध बनाना है। कस्टमर रिलेशनशिप मार्केटिंग - यह ग्राहकों और संभावित ग्राहकों के साथ उस तरह से संबंध बनाने से संबंधित है जिससे कि वे नियमित ग्राहक बन जाए।

रिलेशनशिप मार्केटिंग का सार रिश्ते को पारस्परिक रूप से लाभप्रद बनाना है: प्रत्येक पक्ष सहयोग से लाभान्वित होता है और रिश्ते को बनाए रखने और इसे विकसित करने का प्रयास करता है। विपणन की यह अवधारणा हाल ही में बीसवीं शताब्दी के अंत में उभरी है, और अधिक से अधिक प्रासंगिक होती जा रही है, क्योंकि रिलेशनशिप मार्केटिंग की अवधारणा ग्राहकों को आपकी कंपनी की ओर आकर्षित करने के लिए पैसे खर्च नहीं करने देती है। बल्कि उन ग्राहकों के द्वारा आपके उत्पाद की बिक्री में बढ़ोतरी करती हैं जो पहले से ही आपके उत्पादों में दिलचस्पी ले रहे होते हैं।

रिलेशनशिप मार्केटिंग की लोकप्रियता में योगदान देने वाले कई कारकों में, उपभोक्ताओं का ध्यान आकर्षित करने के लिए उच्च प्रतिस्पर्धा सबसे पहले आती है। जैसे-जैसे ग्राहक ऑफ़र से अभिभूत होते हैं, आपके उत्पादों पर उनका ध्यान आकर्षित करना अधिक कठिन हो जाता है। साथ ही, एक नियमित ग्राहक के द्वारा एक अनियमित व्यक्ति की तुलना में खरीदारी करने की अधिक संभावना होती है। Bain & Company द्वारा किए गए शोध के अनुसार, एक कंपनी अपने लाभ को 25% तक बढ़ा सकती है यदि वह अपने को बनाए रखने की दर को कम से कम 5% बढ़ा दे। ऐसा क्यों होता है? क्योंकि नियमित ग्राहक अधिक महंगी खरीदारी करने को तैयार हैं। वे अधिक खरीदने की प्रवृत्ति भी रखते हैं।

रिलेशनशिप मार्केटिंग की अवधारणा

इसके मूल में, रिलेशनशिप मार्केटिंग (जिसे पार्टनरशिप मार्केटिंग के रूप में भी जाना जाता है) की अवधारणा पारंपरिक मार्केटिंग के समान गतिविधियों पर आधारित है: ग्राहकों की जरूरतों का पता लगाना और पूरा करना। अंतर यह है कि रिलेशनशिप मार्केटिंग ग्राहकों के साथ संबंध बनाने पर अधिक केंद्रित है। रिलेशनशिप मार्केटिंग का उपयोग कंपनी की मार्केटिंग रणनीति के मूल सिद्धांत के साथ-साथ ग्राहक संबंधों को बेहतर बनाने के लिए एक उपकरण के रूप में किया जा सकता है।

रिलेशनशिप मार्केटिंग इस विचार पर आधारित है कि एक पुराने ग्राहक को बनाए रखना एक नए को आकर्षित करने से ज्यादा महत्वपूर्ण है। एक ग्राहक को बनाए रखने के लिए, आपको उन्हें आपसी सहयोग की सर्वोत्तम शर्तें प्रदान करने की आवश्यकता है। पहला कदम अपने ग्राहकों की जरूरतों को जानना और उन्हें पूरा करने में सक्षम होना है। आपको अपना व्यवसाय चलाने का तरीका भी बदलना होगा। ऐसा करने के लिए, ऊपर सूचीबद्ध रिलेशनशिप मार्केटिंग के मूल सिद्धांतों का पालन करें:

  • लंबे समय तक बातचीत एकल लेनदेन के लिए बेहतर होती है, भले ही वे बड़ी हों;
  • पुराने ग्राहकों को बनाए रखना नए लोगों को आकर्षित करने के लिए बेहतर है;
  • सबसे पहले, उन उपभोक्ताओं के साथ संबंधों पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है जो लंबी अवधि में महंगी खरीदारी करने वाले हैं;
  • आपको अपने भागीदारों के प्रति चौकस रहने और उनसे प्रतिक्रिया प्राप्त करने का प्रयास करने की आवश्यकता है।

इन सिद्धांतों को लागू करने के लिए विभिन्न रिलेशनशिप मार्केटिंग रणनीतियों का उपयोग किया जा सकता है।

रिलेशनशिप मार्केटिंग की रणनीतियाँ

कुछ कंपनियां प्रत्येक ग्राहक के साथ व्यक्तिगत रूप से काम करने का जोखिम उठा सकती हैं। ज्यादातर मामलों में, रिलेशनशिप मार्केटिंग में ग्राहक केंद्रित नीति बड़े डेटा सरणियों को संभालने और बड़े पैमाने पर उपभोक्ता के साथ संबंध बनाने के बारे में है। संबंध विपणन में, इसके लिए तीन रणनीतियों का सबसे अधिक उपयोग किया जाता है:

  • बड़े पैमाने पर निजीकरण। विशेष सॉफ्टवेयर का उपयोग करते हुए, एक कंपनी ग्राहक डेटा और उनके व्यवहार के बारे में जानकारी एकत्र करती है। प्राप्त आंकड़ों के आधार पर, खरीदारों को प्रकारों में बांटा जाता है और प्रत्येक प्रकार के खरीदार के लिए सलाह दी जाती हैं।
  • ग्राहकों की आवश्यकताओं के लिए उत्पादों का बड़े पैमाने पर अनुकूलन। उपभोक्ता समूह में, हमेशा ऐसे ग्राहक होते हैं जो अधिक भुगतान करने को तैयार होते हैं: उत्पाद की विस्तारित कार्यक्षमता या विशिष्ट समस्याओं के समाधान के लिए। ऐसा उत्पाद बनाना जो ग्राहक की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करता हो, उनके साथ दीर्घकालिक संबंध बनाने का एक अच्छा तरीका है। कंपनियां अक्सर यह मानती हैं कि ग्राहक स्वयं सही उत्पाद को "इकट्ठा" करने में सक्षम हैं। यह एक गलती है। वास्तव में, इसका दूसरा रास्ता है। यदि आप ग्राहक की ओर एक कदम बढ़ाते हैं, तो यह उन्हें उत्पाद में अधिक रुचि दिखाने के लिए प्रोत्साहित करेगा और बाद में अपने स्वयं के संपूर्ण उत्पाद को "इकट्ठा" करेगा।
  • ग्राहक संबंध प्रबंधन (CRM, Customer Relationship Management) रणनीति। इस रणनीति के अनुसार, ग्राहकों की बातचीत के आसपास एक व्यवसाय बनाया जाता है: उनकी खरीदारी की आदतें, आदि।

कई निर्माताओं के लिए ग्राहक संबंध विकसित करने की आवश्यकता स्पष्ट है, लेकिन सभी निर्माताओं ने अभी तक उपरोक्त रणनीतियों को लागू नहीं किया है। रिलेशनशिप मार्केटिंग के उदाहरणों में अक्सर तकनीकी नवाचारों के साथ काम करना शामिल होता है। ये सभी रिलेशनशिप मार्केटिंग की रणनीतियों को लागू करने के लिए आवश्यक संबंध विपणन उपकरण हैं।

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मिशन 4.0 से औद्योगिक क्रांति को तैयार सरकार, बनाई ये रणनीति

सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने शनिवार को कहा कि उच्च आर्थिक वृद्धि दर हासिल करने के लिये उद्योग-व्यापार का प्रतिस्पर्धी होना जरूरी है और प्रस्तावित नई औद्योगिक नीति इस लक्ष्य को हासिल करने में मददगार होगी.

सरकार ने औद्योगिक क्रांति के लिए बनाई ये योजना (फाइल फोटो)

सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने शनिवार को कहा कि उच्च आर्थिक वृद्धि दर हासिल करने के लिये उद्योग-व्यापार का प्रतिस्पर्धी होना जरूरी है और प्रस्तावित नई औद्योगिक नीति इस लक्ष्य को हासिल करने में मददगार होगी. उद्योग मंडल फिक्की की 91वीं सालाना बैठक के प्रतिस्पर्धी रणनीति क्या है एक सत्र को संबोधित करते हुए ओद्योगिक नीति एवं संवर्द्धन विभाग (डीआईपीपी) के सचिव रमेश अभिषेक ने यह बात कही. उन्होंने यह भी कहा, ‘‘उद्योग 4.0 (आटोमेशन प्रौद्योगिकी पर आधारित चौथी औद्योगिक क्रांति) के लिये देश में कारोबार सुगमता और मजबूत नवप्रवर्तन का वातावरण महत्वपूर्ण है. डीआईपीपी उद्योग 4.0 एजेंडा के क्रियान्वयन के लिये उद्योग और अन्य पक्षों के साथ मिलकर काम करना चाहेगा.’’

सरकार चौथी औद्योगिक क्रांति को तैयार
उद्योग 4.0 से आशय चौथी आद्योगिक क्रांति से है. यह नाम विनिर्माण प्रौद्योगिकी में स्वचालन और डेटा आदान-प्रदान की मौजूदा प्रवृत्ति को दिया गया है. इसमें इंटरनेट आफ थिंग्स, क्लाउड कंप्युटिंग जैसी अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी शामिल है. वित्त मंत्रालय में आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने इसी कार्यक्रम में कहा कि देश डिजिटल बदलाव के बीच में है और बुनियादी ढांचा क्षेत्र में काफी अवसर है जिसके पूर्ण रूप से उपयोग की जरूरत है. उन्होंने कहा, ‘‘नया भारत बनाने के लिये अर्थव्यवस्था का कृषि से विनिर्माण और सेवा क्षेत्र में संक्रमण के दौर को पूरा करने की आवश्यकता है.’’

पर्यावरण समस्याओं पर रखनी होगी नजर
सचिव ने पर्यावरण समस्या के समाधान की जरूरत पर बल दिया और कहा कि आने वाले समय में मुद्रास्फीति के नियंत्रण में रहने के यथोचित कारण हैं. वाणिज्य सचिव अनूप वाधवान ने कहा कि वैश्विक क्षेत्र से उत्पन्न चुनौतियों के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत वृद्धि कर रही है और दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले चुनौतियों का बेहतर तरीके से सामना कर रही है. उन्होंने कहा कि 2015-16 से तेल के ऊंचे दाम, ब्याज दर में वृद्धि तथा संरक्षणवाद के बावजूद भारत मजबूत नीतियों की वजह से कमोबश मजबूती के साथ टिका हुआ है. हालांकि उन्होंने आगाह करते हुए कहा कि हल्की आर्थिक नरमी का दौर आ सकता है. वाधवान ने कहा, ‘‘भारत के आकार को देखते हुए निर्यात क्षेत्र क्षमता से नीचे है. परंपरागत वस्तुओं का निर्यात में हिस्सेदारी अधिक है लेकिन उनकी मांग में नरमी है. ऐसे में निर्यात को विविध बनाने की जरूरत है.’’

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हैम्ब्रिक की रणनीति हीरा

हम रणनीति का परीक्षण करने के लिए हैम्ब्रिक की रणनीति हीरे पर बहुत अधिक निर्भर हैं।

हैम्ब्रिक का हीरा सही नहीं है। पांच सवालों के जवाब देने में सक्षम होने से यह सुनिश्चित होता है कि आपकी रणनीति जरूरी चीजों को नहीं छोड़ रही है।

  • रणनीति कहां सक्रिय होगी (एरेनास)?
  • हम कैसे जीतेंगे (विभेदक)?
  • कौन से परिवर्तन कार्यक्रम हमें (वाहन) स्थानांतरित करेंगे?
  • हमारी गति और परिवर्तन का क्रम क्या है (मंचन)/
  • हमें अपना रिटर्न (आर्थिक तर्क) कैसे मिलता है?

डेलॉइट वैल्यू मैप

निजी क्षेत्र के संगठनों के लिए हम डेलॉइट के वैल्यू मैप का लाभ उठाएंगे। वैल्यू मैप शेयरधारक मूल्य बढ़ाने के लिए उपलब्ध विकल्पों पर संक्षिप्त रूप से प्रकाश डालता है:

  1. राजस्व बढ़ाएँ
  2. ऑपरेटिंग मार्जिन बढ़ाएं (कम लागत)
  3. संपत्ति दक्षता में सुधार
  4. उम्मीदों में सुधार

डेलॉइट वैल्यू मैप


जहां भी संभव हो, हम मौजूदा उच्च गुणवत्ता वाले विश्लेषणात्मक उपकरणों और तकनीकों का लाभ उठाते हैं। हमारा मूल्य एक सुरुचिपूर्ण तकनीक का आविष्कार नहीं, बल्कि एक कार्रवाई योग्य उत्तर के लिए ड्राइविंग से आता है। डेलॉइट वैल्यू मैप हमारे दृष्टिकोण का एक उदाहरण है।

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