क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है

जानें, किस तरह रुपये में लगातार हो रही गिरावट पर अंकुश लगा सकती है सरकार
नई दिल्ली/टीम डिजिटल। डॉलर के मुकाबले पिछले काफी समय से रुपये की स्थिति कमजोर होती जा रही है। लगातार रुपए में हो रही गिरावट से रिजर्व बैंक सहित सरकार की चिंताएं भी बढ़ गई हैं। मंगलवार को डॉलर के मुकाबले रुपया 72.67 के स्तर पर पहुंच गया था। बीचे कई समये से भारतीय मुद्रा में गिरावट के सात कई नए रिकॉर्ज बन गए है। फिलहाल ये अपने सबसे निचले स्तर पर है। इससे देश पर भारी असर पड़ रहा है चलिए जानते है इससे देश को क्या नुकसान हो रहा है और इसका समाधान क्या है।
रुपया के गिरने से हो रही है ये समस्या
एक्सपोर्ट की रफ्तार में कमी आई है लेकिन कच्चे तेल का इंपोर्ट लगातार बढ़ रहा है जिस वजह से हमे अधिक डॉलर का भुगतान करना पड़ रहा है। एक साल के अंदर ही इंपोर्ट और एक्सपोर्ट के बीच का अंतर चालू खाता घाटा 5 साल के उच्चतम स्तर पर है। आरबीआई के पास फिलहाल बड़े पैमाने पर डॉलर हैं लेकिन रुपये की गिरावट को रोकने का असर विदेशी मुद्रा भंडार पर पड़ रहा है। अप्रैल में ये 426 अरब डॉलर था जो अब घटकर 400 डॉलर रह गया है।
ये हो सकते है रास्ते
जो मुद्रा एनआरआई की ओर से जमा कराई गई उस विदेशी मुद्र को आरबीआई ने तीन बार (वर्ष 1998,2000 और 2013) अपना रिजर्व में इजाफा करने के लिए इस्तेमाल किया है। ऐसा पहली बार पोखराण परीक्षण के दौरान किया गया था। उस वक्त 5 अरब डॉलर जुटाने पड़े। इसके बाद 2013 में आरबीआई ने डिपॉजिट स्कीम में छूट के जरिए 34 अरब डॉलर जुटाए गए थे। ताकि रुपये के रिकॉर्ड गिरावट के स्तर से ऊपर ले जाया जा सके। कहा जा रहा है कि एक बार फिर सरकार इस पर चर्चा कर रही है। इसके जरिए सरकार 60 अरब डॉलर जुटा सकती है।
क्यों कर सकते है एनआरआई मदद
कहा जाता है कि एनआरआई की ओर से डॉलर के रुप में जो राशि जमा करवाई जाती है वो राष्ट्रवाद है लेकिन ऐसा नहीं है बल्कि अधिक ब्याज का लालच भी है। पहले रिजर्व बैंक और सरकार ने डॉलर जुटाने के लिए अधिक ब्याज का ऑफर दिया था। अब माना जा रहा है कि इस बार भी रिजर्व बैंक ये कदम उठा सकता है।
रुपये तेल और महंगाई में कनेक्शन
केंद्र सरकार पेट्रोल और डीजल पर फिलहाल टैक्स में कटौती शायद ही करेगी। क्योंकि रुपया में लगातार गिरावट हो रही है। अब अगर सरकार ऑयल टैक्स में कटौती करती है तो उससे राजकोषीय घाटा बढ़ेगा। यदि सरकार ऐसा करती है तो सरकार को बॉन्ड जारी करने पड़ेंगे और इससे रुपये में और गिरावट आएगी।
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भारत क्यों है 1 खरब डॉलर का निवेश चुंबक
शेयर बाजार 11 सितंबर 2022 ,16:15
© Reuters. भारत क्यों है 1 खरब डॉलर का निवेश चुंबक
में स्थिति को सफलतापूर्वक जोड़ा गया:
जैसा कि आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने हाल ही में कहा था, भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियाद मजबूत बनी हुई है। भारत की विकास दर दुनिया में सबसे तेज है, खुदरा मुद्रास्फीति में नरमी आई है, बफर खाद्य भंडार प्रचुर मात्रा में है, विदेशी मुद्रा भंडार पर्याप्त है और चालू खाता घाटा स्थायी स्तरों के भीतर अच्छी तरह से रहने की उम्मीद है।घरेलू खपत मजबूत वापसी कर रही है, जो परंपरागत रूप से भारत के आर्थिक विकास के मुख्य चालकों में से एक है। यह सभी आकार के व्यवसायों के लिए अच्छी खबर है। सीधे शब्दों में कहें, जब उपभोक्ता अधिक खर्च करते हैं, तो व्यवसायों के पास निवेश करने के लिए अधिक पूंजी होती है, और पूरे सिस्टम में बढ़ी हुई तरलता पूरक क्षेत्रों और उच्च अंत वस्तुओं और सेवाओं को सक्रिय करती है।
लेकिन घरेलू खपत में इस उछाल का क्या महत्व है?
पहला, जैसे-जैसे त्योहारी सीजन नजदीक आ रहा है, यह संख्या और भी बढ़ने की संभावना है। अगस्त और नवंबर के बीच जब दोपहिया वाहनों से लेकर रियल एस्टेट तक हर चीज की बिक्री अपने चरम पर होती है, भारतीय उपभोक्ता अधिक खर्च करते हैं। खपत में कितनी तेजी से सुधार हुआ क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है है, इसे देखते हुए अगली तीन तिमाहियों के आंकड़े और भी बेहतर होने की संभावना है।
बेहतर या बदतर के लिए मांग भारत के विकास की कहानी को आगे बढ़ा रही है। एक सामान्य वित्तीय वर्ष में निजी व्यय कुल राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 55 प्रतिशत होता है। इसके अलावा, अगले प्रमुख विकास चालक, सकल स्थिर पूंजी निर्माण (जीएफसीएफ) पर इसका महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है, जो व्यवसायों द्वारा निवेश किए गए धन के लिए जिम्मेदार है। नतीजतन, मजबूत घरेलू खपत अनजाने में मजबूत आर्थिक विकास में तब्दील हो जाती है।
तीसरा, बढ़ती घरेलू खपत उद्योगों में वस्तुओं और सेवाओं की मांग को बढ़ावा देगी, विशेष रूप से उन उद्योगों में जिनमें विवेकाधीन या विलासिता खर्च की महत्वपूर्ण मात्रा शामिल है। प्रीमियमकरण प्रवृत्तियों से प्रभावित उत्पाद खंड बाद वाले में शामिल हैं। इनमें चॉकलेट और मादक पेय से लेकर लैपटॉप और हेडफोन, साथ ही कपड़े और सौंदर्य प्रसाधन तक सब कुछ शामिल है। कुछ श्रेणियों में, जैसे ऑटोमोबाइल, प्रीमियम उत्पादों की मांग ने प्रवेश स्तर के वेरिएंट की मांग को पीछे छोड़ दिया है। उदाहरण के लिए वित्तवर्ष 2012 में प्रीमियम कारों की बिक्री में साल दर साल 38 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि कम कीमत वाली कारों की बिक्री में केवल 7 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
भारत में लग्जरी खर्च क्यों बढ़ रहा है?
बढ़ती उपभोक्ता आय और क्रय शक्ति इसे सहायता कर रही है : औसत प्रति व्यक्ति आय पहले ही 2,000 डॉलर को पार कर चुकी है और 2047 तक 12,000 डॉलर से अधिक होने की उम्मीद है। इसके अलावा, ई-कॉमर्स क्षेत्र और डिजिटल लेनदेन के तेजी से विकास ने लक्जरी बाजार में ग्राहकों की पहुंच बढ़ा दी है। इसके अलावा, चूंकि उपभोक्ता अधिक मूल्य- और अनुकूलन-उन्मुख हो गए हैं, जो पहले एचएनडब्ल्यूआई के प्रभुत्व में थे, प्रीमियम सेगमेंट तेजी से विविधीकरण कर रहे हैं, जिसमें मिलेनियल्स और गैर-मेट्रो उपभोक्ताओं को शामिल किया गया है।
रिमोट और हाइब्रिड वर्किं ग मॉडल के प्रसार के कारण एचएनआई और एनआरआई ग्राहकों के विशिष्ट समूह ने कुछ क्षेत्रों में समृद्ध मध्यम वर्ग के उपभोक्ताओं को शामिल करने के लिए विस्तार किया है, विशेष रूप से लक्जरी आवास।
इसके अलावा, प्रीमियम उत्पाद स्थान अभी भी अपने प्रारंभिक चरण में है और काफी हद तक अप्रयुक्त है। नतीजतन, बाजार सहभागियों के पास कई अवसर हैं। उदाहरण के लिए, जहां भारतीय स्मार्टफोन बाजार में साल दर साल पहली छमाही में 1 फीसदी की गिरावट आई, वहीं प्रीमियम सेगमेंट में 83 फीसदी की वृद्धि हुई। हालांकि, इस सेगमेंट की कुल स्मार्टफोन बाजार में सिर्फ 6 फीसदी हिस्सेदारी है।
जैसे-जैसे घरेलू खपत में वृद्धि जारी है, अन्य क्षेत्रों में प्रीमियमकरण के रुझान को बढ़ावा मिलेगा, त्वरित सेवा वाले रेस्तरां (क्यूएसआर) और घरेलू उत्पादों से लेकर आतिथ्य और स्वास्थ्य सेवा तक। ऐसा पहले भी हो चुका है।
जून नी और एंड्रयू पामर के पेपर कंज्यूमर स्पेंडिंग इन चाइना : द पास्ट एंड द फ्यूचर के अनुसार, 2000 और 2015 के बीच चीन में घरेलू खर्च में तीन गुना वृद्धि के साथ परिवहन और संचार सेवाओं पर खर्च में सात गुना वृद्धि हुई थी।
तो, निवेशकों को निवेश के अवसर कहां मिल सकते हैं?
विवेकाधीन खपत और प्रीमियमीकरण वृद्धि के अनुपातहीन हिस्से के लिए जिम्मेदार होगा।
आतिथ्य और पर्यटन खिलाड़ियों को हवाई यात्रा बढ़ने, शीर्ष स्तरीय होटलों और रिसॉर्ट्स की बढ़ती मांग से लाभ होगा।
प्रीमियम कार मॉडल के लिए ऑटोमोटिव उद्योग के ग्राहक अधिक विविध हो जाएंगे, विशेष रूप से ईवी क्रांति के कर्षण के रूप में।
मनोरंजन क्षेत्र के लिए संभावनाएं उतनी ही आशाजनक हैं, जब तक लोग सब्सक्रिप्शन पैकेज के लिए भुगतान करने के इच्छुक हैं और टियर-2 और टियर-3 शहरों में भी वफादार ग्राहक बने रहते हैं, जब तक पैसे के लायक सामग्री है।
रियल एस्टेट, घर से संबंधित उत्पादों और एफएमसीजी पर्सनल केयर स्पेस की कंपनियों को भी काफी फायदा होगा।
मुख्य बात यह है कि भारतीय उपभोक्ता बाजार वैश्विक सार्वजनिक और निजी इक्विटी निवेशकों के लिए एक प्रमुख फोकस क्षेत्र बना रहेगा। मौजूदा और नई कंपनियां बाजार पूंजीकरण में सैकड़ों अरबों डॉलर का सृजन करेंगी।
क्यों हो रहा है चुनावी बॉन्ड को लेकर हंगामा, क्या होता है इलेक्टोरल बॉन्ड
सदन के शीतकालीन सत्र के दौरान गुरुवार को कांग्रेस ने इलेक्टोरल बॉन्ड का मुद्दा उठाया। कॉन्ग्रेस ने इस मुद्दे को दोनों सदनों में उठाया। इसकी वजह से राज्यसभा की कार्रवाई एक घंटे के लिए स्थगित करनी पड़ी। लोकसभा में कांग्रेस की तरफ से मनीष तिवारी ने इस मुद्दे को उठाया और कहा कि ये बॉन्ड जारी करके सरकारी भ्रष्टाचार को स्वीकृति दे दी गई है। उन्होंने ये तक कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड सियासत में पूंजीपतियों का दखल हैं। भारतीय जनता पार्टी ने इसका पलटवार करते हुए कहा है कि विपक्षी दल इसे बेवजह का मुद्दा बना रहे हैं।
इस मुद्दे को पूरा जानने से पहले ये जान लेते हैं कि आखिर क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड। दरअसल, किसी भी राजनीतिक दल को मिलने वाले चंदे को इलेक्टोरल बॉन्ड कहा जाता है। वैसे तो ये एक तरह का नोट ही होता है, जो एक हजार, 10 हजार, 10 लाख और एक करोड़ तक का आता है। कोई भी भारतीय इसे स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से खरीद कर राजनीतिक पार्टी को चंदा दे सकता है। इन बॉन्ड्स को जनप्रतिनिधित्व कानून-1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत वे राजनीतिक पार्टियां ही भुना सकती हैं, जिन्होंने पिछले आम चुनाव या विधानसभा चुनाव में कम से कम एक फीसदी वोट हासिल किए हों। चुनाव आयोग द्वारा सत्यापित बैंक खाते में ही इस धन को जमा किया जा सकता है। इलेक्टोरल बॉन्ड 15 दिनों के लिए वैध रहते हैं केवल उस अवधि के दौरान ही अपनी पार्टी के अधिकृत बैंक खाते में ट्रांसफर किया जा सकता है। इसके बाद पार्टी उस बॉन्ड को कैश करा सकती है।
केंद्र सरकार ने देश के राजनीतिक दलों के चुनावी चंदे को पारदर्शी बनाने के लिए वित्त वर्ष 2017-18 के बजट में इलेक्टोरल बॉन्ड शुरू करने का ऐलान किया था। चुनावी बॉन्ड क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है का इस्तेमाल व्यक्तियों, संस्थाओं और भारतीय व विदेशी कंपनियों द्वारा राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए किया जाता है। नियम के मुताबिक, कोई भी पार्टी नकद चंदे के रूप में दो हजार से बड़ी रकम नहीं ले सकती है। बॉन्ड पर दानदाता का नाम नहीं होता है, और पार्टी को भी दानदाता का नाम नहीं पता होता है। सिर्फ बैंक जानता है कि किसने किसको यह चंदा दिया है। इस चंदे को पार्टी अपनी बैलेंसशीट में बिना दानदाता के नाम के जाहिर कर सकती है।
विपक्ष इन इलेक्टोरल बॉन्ड को भ्रष्टाचार का तरीका बता रही है। लोकसभा में गुरुवार को मनीष तिवारी ने कहा कि 2017 से पहले इस देश में एक मूलभूत ढांचा था। उसके तहत जो धनी लोग हैं उनका भारत के सियासत में जो पैसे का हस्तक्षेप था। उस पर नियंत्रण था। लेकिन 1 फरवरी 2017 को सरकार ने जब यह प्रावधान किया कि अज्ञात इलेक्टोरल बॉन्ड जारी किए जाएं जिसके न तो दानकर्ता का पता है और न जितना पैसा दिया गया उसकी जानकारी है और न ही उसकी जानकारी है जिसे दिया गया। उससे सरकारी भ्रष्टाचार पर अमलीजामा चढ़ाया गया है।
इस बारे में कई लोगों ने आरटीआई भी डाली है। एक आरटीआई के जवाब से पता चलता है कि भारतीय रिजर्व बैंक और चुनाव आयोग ने इस योजना पर आपत्तियां जताई थीं, लेकिन सरकार द्वारा इसे खारिज कर दिया गया था। आरबीआई ने 30 जनवरी, 2017 को लिखे एक पत्र में कहा था कि यह योजना पारदर्शी नहीं है और मनी लांड्रिंग बिल को कमजोर करती है और वैश्विक प्रथाओं के खिलाफ है। इससे केंद्रीय बैंकिंग कानून के मूलभूत सिद्धांतों पर ही खतरा उत्पन्न हो जाएगा। चुनाव आयोग ने दानदाताओं के नामों को उजागर न करने और घाटे में चल रही कंपनियों को बॉन्ड खरीदने की अनुमति देने को लेकर क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है चिंता जताई थी।
हाल ही में आई रिपोर्ट्स के अनुसार पिछले एक साल में इलेक्टोरल बॉन्डस के जरिए सबसे ज्यादा चंदा बीजेपी को मिला है। एक आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार पार्टियों को मिले चंदे में 91% से भी ज्यादा इलेक्टोरल बॉन्ड एक करोड़ रुपये के थे। इन बॉन्ड्स की क़ीमत 5,896 करोड़ रुपये थी। 1 मार्च 2018 से लेकर 24 जुलाई 2019 के बीच राजनीतिक पार्टियों को जो चंदा मिला उसमें, एक करोड़ और 10 लाख के इलेक्टोरल बॉन्ड्स का लगभग 99.7 हिस्सा था।
इलेक्टोरल बॉन्ड्स में पारदर्शिता की कमी को लेकर चुनाव आयोग लगातार सवाल उठाता आया है। इस मामले की सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि वो इस तरह की फंडिंग के खिलाफ नहीं लेकिन चंदा देने वाले शख्स की पहचान अज्ञात रहने के खिलाफ है। इसी साल अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में चुनावर बॉन्ड्स पर तत्काल रोक लगाए बगैर सभी पार्टियों से अपने चुनावी फंड की पूरी जानकारी देने को कहा था।
Gold bond scheme: अगर नहीं खरीदना चाहते हैं ज्वैलरी और करना चाहते क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है हैं सोने में निवेश तो आज से मिल रहा है सस्ते में सोना खरीदने का शानदार मौका
सोने में निवेश करने वाले लोग आज से गोल्ड बांन्ड स्कीम में निवेश का क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है फायदा उठा सकते हैं. जहां पर सस्ते में सोने में निवेश का मौका मिल रहा है.
Published: December 28, 2020 11:16 AM IST
Gold bond scheme: अगर आप सोने की ज्वैलरी नहीं खरीदना चाहते हैं और आपका मन सोने में निवेश का है तो आज से आपको मिल रहा है सोने में निवेश का शानदार मौका. सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड स्कीम में 28 दिसंबर 2020 से निवेश खुल गया है. केंद्र सरकार की स्कीम सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड में निवेश कर आप डिजिटल गोल्ड खरीद सकते हैं.
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बता दें, चालू वित्त वर्ष के लिए सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड की यह नौवीं सब्सक्रिप्शन सीरीज है. आप 28 दिसंबर 2020 से 1 जनवरी 2021 तक इस स्कीम में निवेश कर सस्ते में डिजिटली सोना खरीद सकते हैं.
यह स्कीम भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) पेश करती है. आठवीं सीरीज के मुकाबले इस बार आपको सोने में कम भाव पर निवेश करने का मौका मिल रहा है. आठवीं सीरीज में सोने का भाव 5177 रुपये प्रति ग्राम तय किया गया था.
सरकारी गोल्ड बॉन्ड की कीमत बाजार में चल रहे सोने के भाव से कम होती है. बॉन्ड के रूप में आप सोने में न्यूनतम एक ग्राम और अधिकतम चार किलो तक निवेश कर सकते हैं. इस पर टैक्स छूट भी मिलती है. गोल्ड बांड स्कीम पर बैंक से लोन भी लिया जा सकता है.
बॉन्ड पर सालाना ढाई फीसदी का रिटर्न मिलता है. गोल्ड बॉन्ड में किसी तरह क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है की धोखाधड़ी और अशुद्धता की संभावना नहीं होती. गोल्ड बॉन्ड 8 साल के बाद मैच्योर होते हैं. 8 साल के बाद इसे भुनाकर पैसा निकाला जा सकता है. निवेश के पांच साल के बाद इससे बाहर निकलने का विकल्प भी होता है.
गौरतलब है कि रिजर्व बैंक के मुताबिक इस बार गोल्ड बॉन्ड की कीमत 5,000 रुपये प्रति ग्राम तय की गई है. हर बार की तरह इस बार भी ऑनलाइन आवेदन करने वाले निवेशकों को बॉन्ड की तय कीमत पर प्रति ग्राम 50 रुपये की छूट दी जाएगी. अगर आप सोना खरीदने के लिए डिजिटल भुगतान करते हैं तो आपको एक ग्राम सोने के लिए 4950 रुपये का भुगतान करना होगा.
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Gold bond scheme: अगर नहीं खरीदना चाहते हैं ज्वैलरी और करना चाहते हैं सोने में निवेश तो आज से मिल रहा है सस्ते में सोना खरीदने का शानदार मौका
सोने में निवेश करने वाले लोग आज से गोल्ड बांन्ड स्कीम में निवेश का फायदा उठा सकते हैं. जहां पर सस्ते में सोने में निवेश का मौका मिल रहा है.
Published: December 28, 2020 11:16 AM IST
Gold bond scheme: अगर आप सोने की ज्वैलरी नहीं खरीदना चाहते हैं और आपका मन सोने में निवेश का है तो आज से आपको मिल रहा है सोने में निवेश का शानदार मौका. सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड स्कीम में 28 दिसंबर 2020 से निवेश खुल गया है. केंद्र सरकार की स्कीम सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड में निवेश कर आप डिजिटल गोल्ड खरीद सकते हैं.
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यह स्कीम भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) पेश करती है. आठवीं सीरीज के मुकाबले इस बार आपको सोने में कम भाव पर निवेश करने का मौका मिल रहा है. आठवीं सीरीज में सोने का भाव 5177 रुपये प्रति ग्राम तय किया गया था.
सरकारी गोल्ड बॉन्ड की कीमत बाजार में चल रहे सोने के भाव से कम होती है. बॉन्ड के रूप में आप सोने में न्यूनतम एक ग्राम और अधिकतम चार किलो तक निवेश कर सकते हैं. इस पर टैक्स छूट भी मिलती है. गोल्ड बांड स्कीम पर बैंक से लोन भी लिया जा सकता है.
बॉन्ड पर सालाना ढाई फीसदी का रिटर्न मिलता है. गोल्ड बॉन्ड में किसी तरह की धोखाधड़ी और अशुद्धता की संभावना नहीं होती. गोल्ड बॉन्ड 8 साल के बाद मैच्योर होते हैं. 8 साल के बाद इसे भुनाकर पैसा निकाला जा सकता है. निवेश के पांच साल के बाद इससे बाहर निकलने का विकल्प भी होता है.
गौरतलब है कि रिजर्व बैंक के मुताबिक इस बार गोल्ड बॉन्ड की कीमत 5,000 रुपये प्रति ग्राम तय की गई है. हर बार की तरह इस बार भी ऑनलाइन आवेदन करने वाले निवेशकों को बॉन्ड की तय कीमत पर प्रति ग्राम 50 रुपये की छूट दी जाएगी. अगर आप सोना खरीदने के लिए डिजिटल भुगतान करते हैं तो आपको एक ग्राम सोने के लिए 4950 रुपये का भुगतान करना होगा.
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