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ज्यादातर व्यापारियों ने पैसे क्यों गंवाए?

ज्यादातर व्यापारियों ने पैसे क्यों गंवाए?

व्यापारियों ने महापौर को गिनाईं समस्याएं, आश्वासन

बुधा बाजार व्यापार मंडल ने समस्याओं को लेकर बैठक की। इसमें मुख्य अतिथि एवं महापौर विनोद अग्रवाल को क्षेत्र में टॉयलेट, सफाई, पार्किंग तथा शुद्ध पानी.

व्यापारियों ने महापौर को गिनाईं समस्याएं, आश्वासन

बुधा बाजार व्यापार मंडल ने समस्याओं को लेकर बैठक की। इसमें मुख्य अतिथि एवं महापौर विनोद अग्रवाल को क्षेत्र में टॉयलेट, सफाई, पार्किंग तथा शुद्ध पानी की आ रही दिक्कतों अवगत कराया। महापौर ने सभी समस्याओं का जल्द समाधान कराने का आश्वासन दिया। अध्यक्षता व्यापार मंडल के संरक्षक हरीश भसीन ने व संचालन संदीप बजाज ने किया। बैठक में देश रतन कटिहार, गिरधर गोपाल, आशीष राय, अमन सिंह, सोमनाथ अग्रवाल, गिरीश डोडा, गुलरेज सिद्दीकी, सलाम,सोनू धवन, विवेक सहगल, श्रीराम, दीपक सहगल, रिंकू आदि शामिल रहे।

विश्व बाजार में रोटी सेंकने का मौका

रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग की वजह से दुनिया भर में भारत के गेहूं के निर्यात की संभावनाएं पैदा हो गई हैं

दाना और भूसा भोपाल के पास एक मंडी में किसान

राहुल नरोन्हा

  • नई दिल्ली,
  • 20 अप्रैल 2022,
  • (अपडेटेड 20 अप्रैल 2022, 2:47 AM IST)
  • गेहूं के वैश्विक बाजार में रूस और यूक्रेन की दुश्मनी की वजह से लंबे समय का एक मार्ग जो ज्यादातर व्यापारियों ने पैसे क्यों गंवाए? खुल गया
  • भारत दुनिया का नंबर 2 गेहूं पैदा करने वाला देश है, पर निर्यात में पिछड़ा रहा है.
  • निर्यात कम होने की एक अहम वजह गुणवत्ता रही है

आपको शायद उम्मीद नहीं होगी कि यूक्रेन की जंग का असर उज्जैन में भी होगा. लेकिन मार्च शुरू होते ही मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फोन कर अपने राज्य से गेहूं की निर्यात की लाइनें जोड़ने का अनुरोध किया. प्रधानमंत्री ने जल्द ही केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल से बात की. उसके बाद निर्यातकों, विदेश मंत्रालय और रेलवे तथा शिपिंग मंत्रालय के अधिकारियों के बीच सक्रियताएं बढ़ गईं.

भला क्यों न होती? गेहूं के वैश्विक बाजार में रूस और यूक्रेन की दुश्मनी की वजह से लंबे समय का एक मार्ग जो खुल गया है. ये दोनों बड़े गेहूं निर्यातक देश हैं. भारत दुनिया का नंबर 2 गेहूं पैदा करने वाला देश है, लेकिन अपनी निर्यात क्षमता का अधिकतम लाभ उठाने में वह पिछड़ा रहा है. अब उसके पास अपनी रोटी सेंकने का पूरा मौका है. आगे कहें तो ऐसा ही मौका उच्च-गुणवत्ता का गेहूं पैदा करने वाले मध्य प्रदेश के ज्यादातर व्यापारियों ने पैसे क्यों गंवाए? लिए भी है.

अगर भारतीय गेहूं का निर्यात बड़े पैमाने पर होने लगता है तो इससे किसानों को बेहतर कीमत मिलेगी और सरकारी खरीद पर उनकी निर्भरता कम होगी और वहां हमेशा हद से ज्यादा भरे रहने वाले भंडार को खाली करने में मदद मिलेगी. उत्साहजनक यह है कि प्राइवेट व्यापारियों ने निर्यात बाजार में मौके ताड़कर खरीद में कदम रखा है. मार्च के मध्य से जब पश्चिमी मध्य प्रदेश से फसल की किस्में मंडियों में आने लगीं, तो प्रति क्विंटल 2,015 रुपए की एमएसपी से अधिक दाम मिल रहा है. लॉजिस्टिक और वैश्विक गुणवत्ता के मानदंड की कुछ चुनौतियां हैं, लेकिन यह बहुत अच्छा मौका है, जिसे गंवाया नहीं जाना चाहिए.

भारत के संभावित बाजारों में मिस्र, नाइजीरिया, थाइलैंड, वियतनाम, तंजानिया, सूडान और तुर्की सरीखे देश शामिल हैं, जहां की स्थानीय जरूरतों के 40-100 फीसद हिस्से को रूस और यूक्रेन के निर्यातक पूरा करते हैं. इसी तरह अफ्रीका के 25 देशों में गेहूं की खपत 20-100 फीसद तक है. लेकिन भारतीय गेहूं हर जगह से गायब है.

ये हालात बदल सकते हैं. भारत को 2022-23 के मार्केटिंग सत्र में 11.1 करोड़ मीट्रिक टन गेहूं की पैदावार की उम्मीद है. 2021-22 में निर्यात महज 70 लाख मीट्रिक टन था जो कुल पैदावार का करीब 7 फीसद ही है—हालांकि वह अतीत के मुकाबले सुधार ही है. बांग्लादेश और श्रीलंका प्रमुख आयातक हैं: उनकी करीब आधी जरूरत को भारतीय गेहूं पूरा करता है. अन्य आयातकों में यमन, कोरिया, फिलीपींस, नेपाल, इंडोनेशिया और पश्चिमी एशिया के कुछ देश शामिल हैं. हर जगह भारत खुद को रूस-यूक्रेन के खिलाफ खड़ा पाता है. लेकिन रूस प्रतिबंधों का सामना कर रहा है और यूक्रेन के दक्षिणी और पूर्वी गेहूं बेल्ट के अधिकतर हिस्से में उसकी बुआई नहीं हो सकी है. कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीईडीए) के चेयरमैन डॉ. एम. अंगमुतु कहते हैं, ''वैश्विक किल्लत से भारत के लिए मौका बना है. हम वित्त वर्ष 23 में अपने निर्यात को दोगुना 1.2-1.5 करोड़ मीट्रिक टन करने का लक्ष्य रख रहे हैं.''

निर्यात कम होने की एक अहम वजह गुणवत्ता रही है. डॉ. अंगमुतु कहते हैं, ''कीमत ज्यादातर व्यापारियों ने पैसे क्यों गंवाए? के मायने में भारतीय गेहूं होड़ में फिट बैठता है, लेकिन सफाई और कीटनाशकों के इस्तेमाल जैसी कुछ समस्याएं हैं. उन पर कृषि मंत्रालय ध्यान दे रहा है. मिस्र से एक टीम मध्य प्रदेश, राजस्थान और गुजरात जैसे राज्यों का दौरा कर रही है, ताकि खुद चीजें देख सके.'' किस्म भी एक और समस्या है. वे कहते हैं, ''अफ्रीका, यूरोप और पश्चिम एशिया में दुरुम किस्म की ज्यादा मांग है, जिससे पास्ता और ब्रेड बन सके. भारत का गेहूं कुछ नरम किस्म का है.''

इसी मायने में मध्य प्रदेश को मौका दिख रहा है. शरबती, लोकवन और अन्नपूर्णा की किस्में अच्छी मानी जाती हैं और इनके आटे से बनाई गई रोटियां ज्यादा सफेद, ज्यादा फूलने वाली और ठंडी होने पर भी नरम रहती हैं. मध्य प्रदेश दुरुम गेहूं की किस्में भी उगाता है ज्यादातर व्यापारियों ने पैसे क्यों गंवाए? और ज्यादातर व्यापारियों ने पैसे क्यों गंवाए? मालवा शक्ति सबसे लोकप्रिय है. इसलिए उत्साह काफी है. रायसेन जिले के उमरावगंज गांव के किसान नईम-उर-रहमान कहते हैं, ''15 वर्ष में शायद ऐसा पहली बार हो रहा है कि गेहूं की खरीद एमएसपी से अधिक कीमत पर हो रही है.'' अन्नपूर्णा और लोकवन किस्में प्रति क्विंटल 2,100-2,300 रुपए में बिक रही हैं, जबकि शरबती 3,000 रुपए की शानदार कीमत पर बिक रही है. मध्य प्रदेश के अतिरिक्त मुख्य सचिव (कृषि) अजीत केसरी बताते हैं, ''हम अपने दूतावासों और उच्चायोगों के जरिए अपनी प्रीमियम किस्मों को लोकप्रिय बनाने में जुटे हुए हैं. ये किस्में बाजारों में लोकप्रिय हो गईं, तो इससे हमें वहां स्थापित होने में मदद मिलेगी, चाहे जंग हो या न हो.''

देश को उन पहलुओं पर तेजी से ध्यान देने की जरूरत है जिससे वैश्विक बाजार में भारतीय गेहूं की वापसी हुई है. एक मसला कीटनाशकों और बीमारियों से जुड़े मानदंडों को हल करना है. निर्यातकों के लिए कागजी कार्रवाई पूरा करना एक अन्य मसला है. पंजाब और हरियाणा सरीखे राज्यों को टैक्स घटाने और निर्यातकों को प्रोत्साहन राशि देने को कहा गया है. मध्य प्रदेश ने लाइसेंस फीस ज्यादातर व्यापारियों ने पैसे क्यों गंवाए? को 20,000 रुपए से घटाकर 1,000 रुपए कर दिया है और निर्यातकों के लिए 3,00,000 रुपए की जमानत राशि माफ कर दी गई है. निर्यात-आधारित अस्थायी छंटाई और ग्रेडिंग इकाइयों की स्थापना के लिए भूमि की मंजूरी भी दी जा रही है.

लाइसेंस फीस और प्रमाणन से जुड़ी दिक्कतें ज्यादातर व्यापारियों ने पैसे क्यों गंवाए? निर्यात के मोर्चे पर भारत की सुस्ती का संकेत देती हैं. अकाल और भुखमरी से मौतों के दर्दनाक ऐतिहासिक अनुभव से हमेशा घरेलू आपूर्ति को बढ़ाने की प्रवृत्ति रही है. लेकिन, अनुमान है कि इस साल करीब 2 करोड़ मीट्रिक टन गेहूं केंद्रीय पूल में उपलब्ध रहेगा, जो विश्व बाजार में भारत के लिए अपने हिस्से पर दांव लगाने की खातिर काफी है.

सिंगल यूज प्‍लास्टिक बंद करने पर बेरोजगार हो जाएंगे इतने लोग, कैट की मांग, विकल्‍प दे सरकार

1 जुलाई से पूरे देश में सिंगल यूज प्‍लास्टिक के उपयोग पर बैन लग जाएगा. (फाइल फोटो)

कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष बी.सी. भरतिया और राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल ने भूपेंद्र यादव को भेजे पत्र में कहा कि . अधिक पढ़ें

  • News18Hindi
  • Last Updated : June 10, 2022, 17:39 IST

नई दिल्‍ली. 1 जुलाई, 2022 से लागू होने वाले सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध एक व्यावहारिक कदम है और पर्यावरण की रक्षा के लिए बहुत जरूरी है, लेकिन समान एवं उचित विकल्पों के अभाव में यह प्रतिबन्ध देश के उद्योग एवं व्यापार पर विपरीत प्रभाव डाल सकता है. देश का कारोबारी समुदाय इस गंभीर मुद्दे पर सरकार के साथ खड़ा है लेकिन साथ ही यह भी मानता है कि प्लास्टिक के सिंगल यूज के स्थान पर समान विकल्प मुहैया कराने के लिए पर्याप्त तैयारी नहीं की गई है. यह कहते हुए कन्‍फेडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने आज केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव को भेजे एक पत्र में कहा है कि पूरे देश में सिंगल यूज प्लास्टिक के बड़े पैमाने पर उपयोग को देखते हुए बिना वैकल्पिक वस्तु के पूर्ण प्रतिबंध व्यापार और उद्योग के लिए बहुत हानिकारक साबित होगा.

कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष बी.सी. भरतिया और राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल ने भूपेंद्र यादव को भेजे पत्र में कहा कि समकक्ष विकल्पों की अनुपलब्धता को देखते हुए इस प्रतिबंध को लागू करना कुछ उचित समय के लिए स्थगित किया जाए. इस बीच सरकार विभिन्न स्टेकहोल्डर्स के साथ सलाह करते हुए समान विकल्प की उपलब्धता को विकसित करे जिससे वैकल्पिक वस्तु के उपयोग के बाद भी कीमतों में इजाफा न हो. उन्होंने सुझाव दिया कि इस आदेश को लागू करने के लिए एक समय सीमा तैयार करने और समकक्ष विकल्पों का पता लगाने के लिए वरिष्ठ अधिकारियों और स्टेकहोल्डर्स की एक टास्क फोर्स का गठन किया जाए. कैट ने देश के कारोबारी समुदाय के समर्थन का आश्वासन देते हुए इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर यादव से मिलने का समय मांगा है.

भरतिया और खंडेलवाल ने कहा कि चूंकि व्यापारी उपभोक्ताओं और जनता के लिए पहला संपर्क बिंदु हैं, इसलिए इस आदेश का विपरीत असर सीधा सबसे पहले उन पर पड़ेगा जबकि उत्पाद बेचने वाले व्यापारी केवल आपूर्ति श्रृंखला के एक घटक के रूप में काम कर रहे हैं और जनता को सामान उपलब्ध करा रहे हैं. जिसके लिए चीजें उपलब्ध हैं. देश में सिंगल यूज प्लास्टिक का 98% बहुराष्ट्रीय कंपनियों, कॉर्पोरेट ज्यादातर व्यापारियों ने पैसे क्यों गंवाए? निर्माताओं, उत्पादकों, ई-कॉमर्स कंपनियों, वेयरहाउसिंग हब, उद्योग और अन्य प्रकार की उत्पादन इकाइयों द्वारा या तो अपनी उत्पादन लाइन या तैयार माल की पैकेजिंग में उपयोग किया ज्यादातर व्यापारियों ने पैसे क्यों गंवाए? जाता है. निर्माता या उत्पत्ति के स्रोत से व्यापारियों को जो भी पैकिंग मिलती है, उसी में व्यापारियों द्वारा सामान बेचा जाता है.

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जब तक इन कंपनियों और विनिर्माण इकाइयों द्वारा उत्पादन लाइन में या तैयार माल की पैकिंग में सिंगल यूज प्लास्टिक के उपयोग को बंद नहीं किया जाता तब तक उपभोक्ता के स्तर पर सिंगल यूज प्लास्टिक के उपयोग की संभावनाएं बनी रहेंगी. इसलिए ऐसे निर्माताओं को सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग बंद करने के लिए बाध्य करने के लिए प्रभावी कदम उठाए जाने चाहिए. इसी तरह प्लास्टिक कैरी बैग के स्थान पर समकक्ष वैकल्पिक कैरी बैग भी उपलब्ध कराए जाएं ताकि प्लास्टिक कैरी बैग का उपयोग सामान रखने के लिए नहीं किया जा सके.

देशभर में बेरोजगार होंगे लोग
दोनों व्यापारी नेताओं ने कहा कि देश भर में दस हज़ार से ज्‍यादा उद्योग और उत्पादन इकाइयां प्लास्टिक के व्यापार में लगी हुई हैं जिससे देश में करोड़ों लोगों को रोजगार मिल रहा है. सिंगल यूज प्लास्टिक के बंद होने की स्थिति में उनकी व्यावसायिक गतिविधियां समाप्त हो जाएंगी जिसके परिणामस्वरूप इन कंपनियों में काम करने वाले ऐसे सभी लोगों की बेरोजगारी भी हो सकती है. इस संदर्भ में सरकार ज्यादातर व्यापारियों ने पैसे क्यों गंवाए? को कुछ व्यवहार्य विकल्प तलाशने चाहिए ताकि ये उद्योग और प्रोडक्शन हाउस अपनी व्यावसायिक गतिविधियों को ऐसे व्यवहार्य विकल्पों की ओर मोड़ सकें और रोजगार में बाधा न आए.

भरतिया और खंडेलवाल ने कहा कि यह एक सच्चाई है कि अगर एकल उपयोग प्लास्टिक का उपयोग उत्पादन या पैकिंग में नहीं किया जाता है बल्कि वैकल्पिक पैकेजिंग में पैक किया जाता है तो एकल का उपयोग प्लास्टिक के उपयोग में भारी कमी आएगी क्योंकि आपूर्ति श्रृंखला के व्यापारी वैकल्पिक पैकेजिंग में उपभोक्ताओं को सामान पहुंचाएंगे. हालांकि, वैकल्पिक उत्पादों की जागरूकता और उपलब्धता दो मुख्य मुद्दे हैं जिन पर ध्यान दिया जाना बेहद जरूरी है.

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छोटे व्यापारियों से पीएम मोदी ने की बात, बोले- रेहड़ी-पटरी वालों की मेहनत से देश आगे बढ़ता है

नेशनल डेस्कः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेरोजगारी की चपेट में आए सड़कों और पटरियों पर सामान बेचने वालों से वर्चुअल संवाद किया। इस दौरान पीएम मोदी ने कहा कि मैंने स्वनिधि योजना के लाभार्थियों से संवाद करते हुए ये अनुभव किया कि सभी को खुशी भी है और आश्चर्य भी है। पहले तो नौकरी वालों को लोन लेने के लिए बैंकों के चक्कर लगाने होते थे, गरीब आदमी तो बैंक के भीतर जाने का भी नहीं सोच सकता था। लेकिन आज बैंक खुद आ रहा है। प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे रेहड़ी-पटरी वालों की मेहनत ज्यादातर व्यापारियों ने पैसे क्यों गंवाए? से देश आगे बढ़ता है। ये लोग आज सरकार का धन्यवाद दे रहे हैं लेकिन मैं इसका श्रेय सबसे पहले बैंक कर्मियों की मेहनत को देता हूं। बैंक कर्मियों की सेवा के बिना ये कार्य नहीं हो सकता था।

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पीएम मोदी ने कहा कि आज का दिन आत्मनिर्भर भारत के लिए महत्वपूर्ण दिन है। ज्यादातर व्यापारियों ने पैसे क्यों गंवाए? कठिन से कठिन परिस्थितियों का मुकाबला ये देश कैसे करता है, आज का दिन इसका साक्षी है। कोरोना संकट ने जब दुनिया पर हमला किया, तब भारत के गरीबों को लेकर तमाम आकांक्षा व्यक्त की जा रही थीं। मेरे गरीब भाई बहनों को कैसे कम से कम तकलीफ उठानी पड़े, सरकार के सभी प्रयासों के केंद्र में यही चिंता थी। इसी सोच के साथ देश ने 1 लाख 70 हजार करोड़ से गरीब कल्याण योजना शुरू की। आज हमारे रेहड़ी-पटरी वाले साथी फिर से अपना काम शुरु कर पा रहे हैं। आत्मनिर्भर होकर आगे बढ़ रहे है।

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पीएम मोदी के संवाद के प्रमुख अंश

  • उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था में स्ट्रीट वेंडर्स की बहुत बड़ी भूमिका है। यूपी से जो पलायन होता था उसे कम करने में भी रेहड़ी-पटरी के व्यवसाय की बहुत बड़ी भूमिका है। इसलिए पीएम स्वनिधि योजना का लाभ पहुंचाने में भी यूपी आज पूरे देश में नंबर वन है।
  • इस योजना में शुरुआत से ये ध्यान रखा गया है कि रेहड़ी-पटरी वालों को किसी प्रकार की परेशानी न हो। इसलिए इस योजना में तकनीक का ज्यादा से ज्यादा उपयोग सुनिश्चित किया गया। कोई कागज नहीं, गारंटर नहीं, दलाल नहीं और किसी सरकारी दफ्तर के चक्कर लगाने की भी जरूरत नहीं।
  • गरीब के नाम पर राजनीति करने वालों ने देश में ऐसा माहौल बना दिया था कि गरीब को लोन दे दिया तो वो पैसा लौटाएगा ही नहीं। लेकिन मैं फिर कहता हूं कि हमारे देश का गरीब आत्मसम्मान और ईमानदारी से कभी भी समझौता नहीं करता है।
  • पीएम स्वनिधि योजना में ऋण आसानी से उपलब्ध है और समय से अदायगी करने पर ब्याज में 7% की छूट भी मिलेगी। अगर आप डिजिटल लेनेदेन करेंगे तो एक महीने में 100 रुपये तक कैशबैक के तौर पर वापस पैसे आपके खाते में जमा होंगे।
  • 1 जून को पीएम स्वनिधि योजना को शुरु किया गया था। 2 जुलाई को ऑनलाइन पॉर्टल पर इसके लिए आवेदन शुरु हो गए थे। योजनाओं पर इतनी गति देश पहली बार देख रहा है।

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बता दें कि कोरोना वायरस के कारण देश में मार्च महीने में लगे लॉकडाउन के चलते कई लोग बेरोजगारी की चपेट में आ गए। खासकर छोटी व्यापारियों को इसका भारी नुकसान हुआ। वहीं देश अब अनलॉक हो चुका है और अर्थव्यवस्था भी धीरे-धीरे पटरी पर लौट रही है।

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